Thursday 3 July 2014

Trust me, you won't find him!



Reminiscences from my diary
June 29, 2014...Saturday
In train from Delhi to Bangalore



बहुत मुद्दत बाद -
जब तुम
ढूंढते -ढूंढते -
मुझ तक आये -
- तो कुछ असमंजस में पड़ गया मैं !
तुम जिसके पास आये हो -
वह तो यहाँ है ही नहीं !
तुम जिसे खोज रहे हो -
वह तो तुम्हे ही खोजता - खोजता -
- कब का खो चुका है !

देख लो ,
यूँ तो वह अब नहीं मिल पायेगा  …
पर यदि फिर भी ढूंढना चाहते हो -
- तो देखो -
शायद A-118 के दरवाज़े पर चिपके -
फटे कागज़ों में कहीं दिख जाये ,
या फिर ,
हो सकता है  …
उस कमरे की मटमैली दीवार पर उकेरे,
मटमैले गणपति के मटमैले रंगों में -
रंगा बैठा हो !

 यूँ तो फिर कहता हूँ -
मुमकिन  नहीं अब -
- उसका मिलना  …
 जिसे तुमने खुद ही खोने के लिए -
- छोड़ दिया था !
पर यदि फिर भी कोशिश करना चाहो -
- तो  कर लेना !
शायद बैठा मिला जाये -
किसी निर्जन - से मंदिर की सीढ़ियों पर -
अस्त होते सूर्य की झीनी रोशनी को -
-  ताकता हुआ !

अगर  वहां भी विफल हो जाओ जाओ ,
तो देखो , शायद ...
किसी व्यस्त बाज़ार में -
लोगों के जंगल में -
सर्प - सा  मार्ग बनता बनाता -
सड़कों की खाक छानता -
कभी किसी दुकान पर यूँ ही रुकता -
और फिर , कुछ सोचते- सोचते -
यूँ ही आगे बढ़ता हुआ -
दिख जाये !
सुना था कभी ,
जिह्वा बहुत चटोरी थी उसकी  …
तुम्हे तो पता ही होगा !
ठहरकर चलना ज़रा ,
रास्ते में आती चाट की दुकानों में -
और नुक्कड़ों पर खड़े ठेलों में -
क्या पता , कहीं किसी ठेले पर -
- गोलगप्पे या टिक्की खाता -
- दिख जाये !

तुम इतना चलोगे , तो शायद -
थक जाओगे,
पर, उसका मिलना मुश्किल है !
मैंने भी की है कोशिश , यूँ तो ,
उससे मिलने की  -
पर अब नहीं आता वह ,
मुझसे भी मिलने  … !
कर सको तो,
एक बार उसे उसकी कविताओं में -
- ढूंढने का प्रयास कर लेना !
हो सकता है -
उसका पता छिपा हो -
शब्दों के ताने-बाने  में !
हाँ,
यह हो सकता है कि -
उसका पता हो न हो ,
उन अक्खरों में , शायद , तुम ही-
- खुद को पा जाओ !

अगर अब भी हार न मानो ,
तो देखो -
शायद किसी छोटे बच्चे को ,
एक बड़ी - सी कहानी सुनाता हुआ -
- मिल जाये !
या फिर ,
कहीं, किसी -
- बहते , बरसते या ठहरे सलिल से -
- गुफ़्तगू करते हुए -
- अल्फ़ाज़ों में पढ़ा जाये !

हो तो यह भी सकता है कि -
किसी बूढ़े पुस्तकालय की -
धूल चाटती किताबों की महक में -
घुली हो उसकी भी  गंध  …
अगर पहचान सको ,
तो हो सकता है -
उसका पता मिलने में आसानी हो !

अगर कभी कोई हवाई उड़ान भरो ,
तो देखना ज़रा -
कहीं तुम्हारी बगल में ही बैठा -
बंद खिड़की से बादलों को-
- छूने की -
कोशिश न कर रहा हो !
कभी किसी भोर में -
जब तुम गहरी नींद में डूबे हो -
और अचानक से आँख खुल जाए -
तो देखना ,
कहीं हवा के साथ वह भी तो नहीं छू गया तुम्हें !
पर, तुम फिर भी उसको,
शायद ही पकड़ पाओ !
सुना है , अब हवा का साथी है वह  …
ठहरेगा नहीं !

यूँ तो कई पते बता दिए तुम्हें , मैंने -
पर , मत ढूंढो अब उसको -
- कि वह अब दूर जा चूका है -
क्षितिज - सा दूर  …
क्षितिज से दूर  …
बहुत देर से आये तुम -
अब नहीं रहता वह यहाँ !
अब नहीं रहता वह यहाँ !