Sunday 19 March 2017

She was beautiful! She is..!



Reminiscences from my diary

March 16, 2017
2:00 AM
Murugeshpalya, Bangalore


बचपन से ही -
आँखों के पानी में -
एक तस्वीर तैरती है  ...
मेरे नाना - नानी की तस्वीर !
गुड्डा - गुड्डी से मेरे नाना - नानी ...

नाना, जो अपनी -
- नसों के गुच्छों की बेवफाई झेलते -
ज़्यादा चल नहीं पाते थे  ...
- अक्सर कुर्सी पर बैठे -
अपना ब्लैक एंड व्हाइट टी.वी. -
- मजे से देखते मिलते !
यूँ भी , शायद गुस्से को उनकी मोटी नाक -
- पसंद ही नहीं आई कभी !
जब देखो -
"सुशीला ! सुशीला !"
"सुशीला, इधर आना !"
"सुशीला, सुन रही हो ?"
और, उनकी  हर आवाज़  पर -
माथे को बड़ी लाल बिंदी से सजाने वाली -
- मेरी छोटी-सी , मोटी-सी नानी -
कुछ गुर्राती -
कुछ इठलाती -
ठुमकती - ठुमकाती -
पहुँच जाती थी कुर्सी और टी.वी. के पास  ...
"उफ्फ ! जब देखो, सुशीला सुशीला !"
"काम करूँ या तुम्हारी बातें सुनती रहूँ !"

नोंक - झोंक  -
रूठना - मनाना -
हँसी - ठहाके -
गुड्डा - गुड्डी से मेरे नाना - नानी !

चौदह बरस गुज़र गए -
अपनी नानी के माथे पर -
- वो बड़ी-सी लाल बिंदी देखे हुए !
चौदह बरस गुज़र गए -
उस टी.वी. और कुर्सी वाले कमरे में -
- मकड़जाल पलते हुए !
चौदह बरस गुज़र गए -
नानी को चार बच्चों में बँटते हुए !
अपने अंदर के झंझानाल को -
- अपनी मुस्कान में लपेटे हुए !
अपने अंदर के एकाकीपन को -
- अपने नयनों में कैद किए हुए !

सोचता हूँ -
नाना का ख़्याल -
अपने बच्चों के बचपन का ख़्याल -
उस पुरानी गली, पुराने घर, पुराने कमरे का ख़्याल -
नानी की रूह को रह रह  चीर जाता होगा न!
"सुशीला सुशीला" की आवाज़ -
- अब भी उनके कानों में गूंजती होगी न!

आखिरी बार जब देखा था -
तो बालों को सफ़ेद पाया था !
डाई लगानी छोड़ दी है अब !
दांत भी नकली लगाने लगी हैं !
मेरे साथ लूडो भी कम खेलने लगी हैं !
बूढ़ी लगने लगी हैं मेरी नानी !

आज शाम ऑफिस से निकल रहा था -
जब माँ का फ़ोन आया !
,पता चला, नानी की रीढ़ की हड्डी -
- दुरुस्त नहीं रही !
दर्द से झटपटा रहीं हैं !
समझ नहीं आया , क्या बोलूँ !

बच्चों में बँटती मेरी नानी -
कितने ही दर्दों से पार होती मेरी नानी -
शांत, धीर, गंभीर सिंधु सी- मेरी नानी -
नाना की हंसी में खिलखिलाहट घोलती मेरी नानी -
कभी न थकने वाली मेरी नानी -
शायद, अब -
थकती जा रही हैं  .... !