Wednesday 24 May 2017

The midnight visitor

Reminiscences from my diary

May 21, 2017
01:30 AM
Murugeshpalya, Bangalore


आधी रात होने में -
आधा पहर भी नहीं बचा है !
पर, तुम हो कि -
- सोने ही नहीं दे रहे हो !
क्या बात है ?
सब ठीक है न ?
सात आसमानों पार से, इतनी रात गए -
कोई यूँ ही, बिना खबर -
- आता है भला ?
कब से खिड़की खटखटा रहे हो !
रुको, ज़रा बाहर आने दो मुझे !

लो, मैं बाल्कनी में आ गया हूँ !
अब थोड़ा सा थम भी जाओ !
कब तक सामने टीन की छत पर -
- धम्म - धम्म करते रहोगे ?
वैसे एक बात कहूं ?
इस नीरव - से पहर में -
इस नीरव - सी सड़क की -
नीरव - सी स्ट्रीट - लाइट की रोशनी में -
तुम सलोने लग रहे हो !

... और, ये जो तुम -
- मेरे मनी - प्लांट के हर पत्ते पर -
- आकर बैठ गए हो  ...
... रात भर तो रुकोगे न ?
या फिर, हमेशा की तरह -
- सुबह होते ही गायब हो जाओगे ?

... और ये जो तुम बीच - बीच में -
- मुझे छू रहे हो -
- तुम शायद खुद भी नहीं जानते कि -
- तुम मुझमें कितना उन्माद भर रहे हो !
अगर ऐसा करते रहोगे, तो फिर -
- मुझे नींद कैसे आएगी ?

... वैसे, ऐसा ही तो करते आए हो -
- तुम, हमेशा !
जब तुम्हें नींद नहीं आती -
- तुम मुझे भी सोने नहीं देते !
लगा था  ...
बरस बीतने के साथ -
- तुम्हारी यह आदत भी बीत जाएगी !
पर न  ...
... शायद तुम्हारी कुछ आदतें -
- अब भी वैसी ही हैं  ...

... वरना, इतनी रात गए -
- इतनी बरसात होती है भला !!










Saturday 13 May 2017

Moments 'n' Memories, dispersed!



Reminiscences from my diary

May 12, 2017
Friday, 05:00 pm
GS, CD, Bangalore


आज, कुछ यूँ सा हुआ कि -
तुम्हे याद करते - करते -
कब शाम -
मेरे चाय के कुल्हड़ में घुल गई -
और मुझमें उतर गई -
- पता ही न चला !

*****

हुआ तो कुछ यूँ भी था एक दफा, जब -
अपने कमरे की खिड़की पर -
- तुम्हारा इंतज़ार बाँधा था !
जानते हो ? आज भी तुम्हारा इंतज़ार -
- उसी खिड़की की टूटी जाली में -
- उलझा पड़ा है !

*****

एक बार, पलकों से -
- चाँद काटा था मैंने !
और पहरों पहर रात खेई थी !
कुछ रंजिशें थी शायद -
- उस पार भी !
न भोर मिली , न तुम !

*****

वो अलसाई - सी शब,
सावन का सलिल -
और सलिल से सीला मन !
तीनों ने कितनी बार , कितनी ही -
- कहानियाँ गढ़ी हैं ! पता है -
- उन कहानियों के बाहर भी तुम, अंदर भी तुम !

*****