Monday 30 July 2018

Existence yet unanswered!



Reminiscences from my diary

July 30, 2018
Monday 08:00 pm
Murugeshpalya, Bangalore


कभी - कभी मेरा मानस - हंस
उड़ते - उड़ते
सात आसमानों के पार
एक ऐसे क्षितिज को स्पर्श कर जाता है
जहाँ मैं सोचने लग जाता हूँ कि -
क्या मेरे अस्तित्व का यथार्थ होना -
- अवश्यम्भावी था ?

...पर फिर सोचता हूँ कि
क्या ऐसा सोचना
नियति पर प्रश्नचिह्न लगाना नहीं है ?
नियति, ब्रह्म, ब्रह्माण्ड -
मेरे लिए -
एक दूसरे के पर्याय ही तो हैं
और मेरे आराध्य भी !

तो क्या आराध्य पर प्रश्नारोपण किया जा सकता है ?
शायद नहीं
या फिर
शायद हाँ !
हाँ, शायद, अगर आराध्य मूक हो
या फिर
गहन मित्र
या फिर
एक मूक मित्र !

आराध्य ने शंख फूँका
संज्ञा संचारित हुई
अणु को सत्ता मिली
पर क्यों, ये सत्ता -
ये अस्तित्व -
जो पाषाण - सा था
और आद्यांत तक
पाषाण - सा ही रह सकता था
समय के साथ -
सलिल बन गया !
जहाँ जो मार्ग दिखा, वही अपना लिया !

सोचता हूँ -
ऐसी श्वास भी क्या श्वास
जो
नियति, ब्रह्म, ब्रह्माण्ड से न लड़े !
जो
अपने मूक मित्र को न झकझोरे !
जो
अनगढ़ नीर के सामने हिमालय - सी न डटी रहे !

खैर  ...
कोई तो ऐसा चित्रगुप्त होगा
कोई नियति - प्रबंधक
जिसके बही - खातों में
खंड - खंड ही सही
तार तार ही सही
मेरे प्रश्नों के
उत्तर तो होंगे !









Monday 23 July 2018

...that road to Thimphu



Reminiscences from my diary

March 30, 2018 Friday
10:00 AM
Damchoe's Home-stay
Thimphu, Bhutan


दो उँगलियों के बीच से -
बादल को फिसलते देखा  ...
और फिर कुछ देर बाद -
कोहरे को टकराते देखा  ...
और उसके कुछ देर बाद -
उन्हीं दो उँगलियों के बीच से -
बादल और धुंध - दोनों को ही - भागते देखा !

अजीब लगा पहले  ...
बादल तो ऊपर होते हैं -
आसमान में !
तो फिर मेरी उँगलियों ने -
- इन्हें कैसे छुआ ?
सोच ही रहा था, तभी -
- सलिल बरस पड़ा  ... ज़ोर से !
रह नहीं पाता यह भी -
- मेरे बिना !
जहाँ पहुँचता हूँ -
- पीछे - पीछे आ जाता है !

कुछ देर मूसलाधार बरसात होती रही  ...
इतनी-
- कि लगा, मानो -
आज नीर में ही -
वायु, अग्नि, पृथ्वी और नभ -
सब समा जाएँगे !

हाथ गाड़ी के शीशे से बाहर था !
वे दो उँगलियाँ ही नहीं, पूरा हाथ ही -
जम गया था -
ठण्ड से -
हवा से -
पानी से -
और फिर ओलों से !
भूटान केओले - हेलस्टोन्स !
पता नहीं, क्या कहते हैं इन्हें -
- यहाँ की भाषा में ?

उस एक घंटे में लगा, मानो -
भूटान ने अपने सभी रंगों से -
मौसम के हर मिजाज़ से -
स्वागत किया हो -
मेरा  ...
और मेरे साथ -
मुझमें कहीं खोए -
तुम्हारा !