Monday 19 November 2018

Disbanded


Reminiscences from my diary

Monday, Nov 19, 2018
07:30 pm
Murugeshpalya, Bangalore


रोज़ दिन यूँ ही बीत जाता है
रोज़ शाम यूँ ही आ जाती है
और, शाम के पहर में, यूँ ही -
- बिखर जाता हूँ मैं !
फिर, कभी किसी लम्हा -
बिखरी - बिखरी नींदों में -
बिखरी - बिखरी नींदों के बिसरे - बिसरे सपनों में -
कतरा कतरा रात, कतरा कतरा -
-मुझे जोड़ जाती है, एक बार फिर
- अगली साँझ बिखरने के लिए !