Monday 16 September 2024

I cry sometimes when I see you

Reminiscences from my diary

Sept 16, 2024
Monday, 2222 IST
Murugeshpalya, Bangalore


रोज़ की तरह 
घर के पीछे की गली में 
रात की सैर पर निकला 

चलते-चलते 
गुलमोहर और नीम के 
झुरमुटों से होते हुए 
नज़र पड़ गई 
पूरे चाँद पर 

एकाएक 
पता नहीं क्या हुआ 
मैं रो-सा पड़ा 

हालाँकि 
ऐसा पहली बार नहीं हुआ 

आँसू यूँ ही 
तब भी लुढ़क पड़े थे 

जब 
पूस की एक रात 
शॉल में लिपटा 
पहाड़ों से घिरा मैं 
तारों सने आसमान में 
नहीं ढूँढ पाया था 
ज़रा-सा भी 
चाँद 

या जब 
फाल्गुन की पूनम से 
दो-तीन रात पहले 
चाँद को देखते-देखते 
दिखने लगे थे 
तुम्हारे 
बेढंगे
ऊबड़ -खाबड़ 
नाख़ून 

या जब 
सामने पाया था 
गहरा काला समुद्र 
केंकड़ों और कंकणों से बचता 
बिन मोबाइल बिन टॉर्च 
नंगे पाँव 
सिर्फ़ आधे चाँद के सहारे
पहुँच पाया था
अपने सराय 

आँख तो तब भी भर गई थी 
शायद
जब माँ ने
किसी एक जन्मदिन से पहली रात  
झूठ-मूठ 
चाँद को
अपनी ओक में ले 
मेरी हथेलियों में लुढ़का दिया था 

मैं सोचा करता हूँ कभी-कभी 

वे जो चाँद पर
पानी खोज रहे हैं 
कैसे ढूँढ पाएँगे 
इन आँखों को 
इन आँखों की 
चोरी को !