YOU, THE SHAMS, IN ME!
Reminiscences from my diary
Nov 23, 2015 ( Happy Udaan Day, Happy birthday Siddharth )
Murugeshpalya, Bangalore
आज बैठे बैठे ,
यूँ ही -
अपनी बारीकियों पर -
- गौर किया ,
तो उनमें -
- तुझे घुला हुआ पाया ...
... मानो ,
मैं एक कतरा बूँद -
-और ,
मुझमें समाया तू -
- समंदर - सा !
मेरी हर एक हरकत -
मेरी हर एक बरकत -
मानो -
- तुझसे आती हो -
-और ,
तुझमें ही लौट जाती हो ...
... जैसे,
तू तू नहीं -
मैं हो -
मुझे जीता - सा -
मुझमें जीता - सा !
मेरे युग , जैसे -
- तुझमें सिमटे हों ...
... और ,
हर श्वास के साथ -
ऐसा लगा जैसे -
- तुझे अपनी रूह में घोला हो ...
... और ,
खुद को , शून्य में -
- पिघलाया हो !
जानता हूँ ,
मेरे जिस्म,
और मेरी आत्मा के -
- हर अणु को -
- तेरा सलिल सींचता है !
तुझमें , तेरी हवा में रमता है !
काश !
तू भी, कभी -
यूँ ही -
मेरी बारीकियों में -
- अपना अक्स देख पाता !
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