Spinner of yarns
Reminiscences from my diary
Feb 15, 2017
04:00 pm
GS, CD, Bangalore
सुनो ! सुन रहे हो ?
तुमने तो कहा था -
- कभी नहीं भूलोगे ...
- कभी नहीं भुलाओगे। ...
झूठ कहा था क्या ?
तुमने कहा था कि -
- जब भी तुम्हें पास न पाऊँ, तो बस -
- चाँद के कान में फुसफुसा दूँ ...
तुम तक मेरा दिल पहुँच जाएगा !
पर सुनो !
मुद्दत बीत गयी है -
मैं रोज़, कभी पूरे , तो कभी आधे - अधूरे चाँद को ढूंढकर -
- उससे पहरों बातें करता हूँ !
पर, वह तो बस बेबस - सा -
- मुझे एकटक देखता रहता है ,
कहता कुछ भी नहीं ... !
तुमने चाँद से साँठ - गाँठ कर ली है -
- झूठ कहा था क्या ?
तुमने कहा था कि -
- मैं तुम्हारे सामने न भी रहूँ -
- आँख - मिचौनी खेलूँ -
बिना बताये कहीं छिप जाऊँ -
- तो तुम मुझे ढूंढ निकलोगे !
पर सुनो !
एक उम्र गुज़र गयी है -
मैं तुम्हारे सामने नहीं हूँ -
मीलों दूर कहीं अलग - थलग पड़ा हूँ -
भीड़ में गुम हुआ जा रहा हूँ ...
पर तुम तो मुझे एक बार भी नहीं ढूंढ पाए !
तुम मुझे मेरी खुशबू से पहचान लोगे -
- झूठ कहा था क्या ?
तुमने तो यह भी कहा था, कई बार -
- मैं कहीं भी आऊँ, कहीं भी जाऊँ -
- तुम मेरे साथ - साथ साये से चलोगे,
और जब भी नज़र घुमाऊंगा -
- तुम्हे पाऊंगा !
पर सुनो !
मैं कई सफ़र तय कर चुका हूँ -
कई दरिया, कई पहाड़ लाँघ चुका हूँ -
और अपने हर कदम के साथ -
- चारों ओर बिखरे चेहरों में -
- शून्य में, विस्तार में -
- चल में, अचल में -
मैंने तुम्हारा चेहरा खोजा है -
- पर तुम तो कहीं नज़र नहीं आये !
आँखों में कैद सलिल से साथ रहोगे हमेशा -
- झूठ कहा था क्या ?
चलो, अब बहुत झूठ हुआ !
कह दो, हर याद झूठ है !
चाँद से साझेदारी झूठ है !
मेरी खुशबू झूठ है !
आँखों में पलता नीर झूठ है !
सुनो,
अब एक बार तो सच कह ही डालो !
Okay Shanu... Now this is emotional... Just reminded me of :
ReplyDeleteहर झील की गहराई भी नाप ली , तेरी मुस्कान का वो मोती न पा सका,
हर मुद्दत पर एक साये की तलाश में है दिल,और अंधेरो के दरमियान मैं वो भी न पा सका
कभी बेशर्म सी मुहब्बत का आशियाँ था हमारा,
आज पाक पर्दे में है सब, दफन मेेरे सीने में कहीं।।