A night for a night
Reminiscences from my diary
Aug 19, 2017 Saturday
10:30 pm
Murugeshpalya, Bangalore
वे कहते हैं -
रात की न जात होती है, न नस्ल -
न मुल्क होता है, न शक्ल !
रात तो बस रात होती है -
सबके लिए एक - सी !
अब उन्हें कैसे समझाऊँ कि -
- तेरी और मेरी रात एक -सी कहाँ हैं !
एक रात तेरी है ...
एक रात मेरी है ...!
कितनी अलग है तेरी और मेरी रातें !
एक रात तड़प - सी कटती है -
एक रात खुमारी में सजती है !
और मेरी रात की सिसकियों में -
- जब तेरी रात का सुकून मिलता हैं, तो शायद -
- एक सितारा पैदा होता है -
- कहीं किसी आकाश-गंगा में !
मेरी रात का मंज़र -
- शायद मेघदूत - सा है !
बादल का टुकड़ा -
एक आवारा टुकड़ा,
जो शायद -
- मेरे सपनों की तड़प -
- तेरी रात तक पहुँचाना चाहता है !
कुछ बोल लिए फिरती है मेरी रात -
पता नहीं क्या, पर अक्सर -
किसी धुन में पिरोने की कोशिश करती है उन्हें -
- पर चाहकर भी गुनगुना नहीं पाती !
गुनगुनाएगी भी कैसे !
उन बोलों की लय तो -
तेरी रात चुराकर बैठी है, और मेरी रात -
- यह राज़ जानती है शायद !
वैसे, क्या तेरी रात ने भी -
इस गीत को -
पूरा करने की कोशिश की है कभी ?
रोज़ सूरज ढलते ही -
मेरी रात -
जुगनू - सी -
किसी ओट से निकलती है -
और ढूँढने निकल पड़ती है -
तेरी किसी ऐसी रात को -
- जिसमें तूने -
मेरा अक्स -
- या मेरा एहसास -
- घोला हो कभी !
कहीं से -
मेरी रात को -
रातों के उस मोहल्ले का पता मिल गया है -
जहाँ तेरी रात-
कभी छत से, कभी खिड़की से -
चाँद से गुफ़्तगू करती थी !
बस ... तभी से -
मेरी रात -
उसी चाँद की रोशनी में -
उस मोहल्ले का -
हर दरवाज़ा, हर रोज़ खटखटाती है !
और यह तो तय है -
जब भी कभी -
मेरी रात -
मेरी ही खुशबू से भरी -
तेरी किसी रात से टकराएगी ...
तो फिर -
न वो तेरी रात होगी ...
न वो मेरी रात होगी ...
वो बस एक रात होगी !
एक कायनाती रात ... !
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