Wednesday, 6 April 2022

One last blessing

Reminiscences from my diary

Apr 07, 2022
Thursday 0145 am
Murugeshpalya, Bangalore


मेरी स्मृतियाँ
समय - समय
नगर - नगर
चलते - चलते
चलते 
चलते
थक गई हैं 
इतना
कि
उनके पाँवों पर
अब
छाले - छाले
उग आए हैं
एड़ियों की बिवाइयों से
अतीत
रिसता - रिसता
जम गया है
एक और पग भी
इनके लिए चलना
दूभर 
हो गया है  

हे ब्रह्मांड की समस्त आत्माओं
सुनो - सुनो
सुनो ! 
मेरी इन 
लहूलुहान स्मृतियों को
सदा - सदा के लिए 
अपंग होने का
एक अंतिम वरदान दो ! 









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