One last blessing
Reminiscences from my diary
Apr 07, 2022
Thursday 0145 am
Murugeshpalya, Bangalore
मेरी स्मृतियाँ
समय - समय
नगर - नगर
चलते - चलते
चलते
चलते
थक गई हैं
इतना
कि
उनके पाँवों पर
अब
छाले - छाले
उग आए हैं
एड़ियों की बिवाइयों से
अतीत
रिसता - रिसता
जम गया है
एक और पग भी
इनके लिए चलना
दूभर
हो गया है
हे ब्रह्मांड की समस्त आत्माओं
सुनो - सुनो
सुनो !
मेरी इन
लहूलुहान स्मृतियों को
सदा - सदा के लिए
अपंग होने का
एक अंतिम वरदान दो !
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