The lost bridge of hopes
Reminiscences from my diary
Tuesday, Aug 13, 2024
2215 IST
Murugeshpalya, Bangalore
एक पुल था
आस से बना
आस पर टिका
डोर-डोर
पग-पग
फिर एक बार
बिना तारीख़ की
साँझ आई
पुल टूट गया
कतरा -कतरा
लम्हा-लम्हा
सुनते हैं
जान-माल की
कोई हानि नहीं हुई
बस कुछ
आत्माएँ
जो पलतीं थीं
आस की
दो से कहीं ज़्यादा आँखों में
जैसे
बीहड़ों में
दो से कहीं ज़्यादा मकड़ियाँ
बेघर हो गईं और
भटकतीं रहीं
पुल -पुल
आस-आस
थक-हार हर रात
लौटती रहीं
टूटे ठौर के
मलबे पर
कहने वाले
यह भी कहते हैं कि
एक भोर
अचानक
नीचे बहती बिना नाम की
नदी ने
तरस खाकर
उन सभी आत्माओं को
दे दी थी
अपने भँवर में
सात जन्मों की पनाह