The Eternal Quest...
REMINISCENCES FROM MY DIARY....
July 7, 2012
12:15 A.M., 750, IISc
अक्सर ,
उस अनजान शख्सियत का ,
चेहरा
खोजने की कोशिश करता हूँ ,
जो ,
मन और मानस में फैली-
धुंध में ,
गुम - सा रहता है -
कभी गुनगुनाते लब्ज़ों में ,
किसी अधलिखी कविता में ,
खुद और खुदा से होती गुफ़्तगू में ,
या फिर ,
इस पार से उस पार को जोड़ती ,
किसी कहानी में ।
कभी - कभी
पलंग पर लेटे - लेटे ,
आकृति में ढालने की कोशिश करता हूँ , उसे ,
दीवार पर पड़ी -
आड़ी - तिरछी दरारों में ,
या फिर,
हवा के साथ मचलते - इठलाते -
नीले - काले बादल के टुकड़ों में ।
कभी लगता है , वह
शायद शिवानी के किसी उपन्यास के -
- नायक - सा है ;
या फिर -
मुंशीजी के किसी -
- बेबस किरदार - सा ।
यूँ ही सहसा कभी लग जाता है ,
मानो उसने पुकारा हो -
मन मचलने लग जाता है -
क्या पता -
आवाज़ पहचान कर ,
चेहरा भी पहचान पाऊँ !
इसलिए ,
चेहरे के साथ - साथ -
आवाज़ खोजना शुरू कर देता हूँ ।
कभी लगता है ,
नवजात शिशु की किलकारी - सी है
या फिर ,
कलकत्ते की किसी व्यस्त सड़क के -
- कोलाहल में दबी कोई एक ।
हो सकता है,
गुरद्वारे की गुरबानी में छिपी हो ;
या,
किसी घने गीले जंगल में जुगनुओं की -
-झंकार में ।
पर अंत में ,
हताश - निराश हो जाता हूँ ,
जब ढूँढते - ढूंढते विफल हो जाता हूँ।
न आँखें कुछ खोज पाती हैं , न कान !
न चेहरा मिल पाता है, न ही आवाज़ !
और इस तरह ,
उस मूक निराकार के साथ -
आँख मिचौनी खेलता रहता हूँ ।
कभी तो ऐसा होगा ,
जब ऐसी ही धुंध होगी ,
और,
ढूँढने की बारी -
- " उसकी " होगी ।
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