A night of words..... with words......
Reminiscences from my diary
January 10, 2014
3 A.M. Ooty
आज की शब कुछ अलग सी थी …
कुछ सकुचाई - सी … कुछ अलसाई - सी …
कुछ टूटती … कुछ बिखरती …
मानो,
शब्दों का खंडर हो ,
और मैं , एक जोगी …
जिसे मिल गया हो -
रात बसर करने के लिए -
एक मनचाहा सन्नाटा !
जहाँ बनती - बिगड़ती पंक्तियाँ -
- बनी थीं सेज …
जहाँ हवा थी -
-अलंकारों से अलंकृत …
और, छत से टपक रहा था -
-कल्पनाओं का सलिल !
जहाँ दीवार की तरेड़ों से -
- आ रही थी …
… किसी अधूरी उमंग की -
- ढलती कसक की -
-एक-आधी रश्मि !
और,
यादों के जुगनू -
- अल्फ़ाज़ों की ईंटों से -
- गुफ्तगू कर रह थे !
कब आँख लग गयी …
कब पहर बीत गया ....
न मैं जान पाया ,
न जोगी मन !
सुबह तकिये के पास -
ठण्ड से -
-एक कविता कांप रही थी !
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