Thursday, 30 January 2014

                                           A night of words..... with words......


Reminiscences from my diary
January 10, 2014
3 A.M. Ooty



आज की शब कुछ अलग सी थी  …
कुछ सकुचाई - सी  …  कुछ अलसाई - सी  …
कुछ टूटती  …  कुछ  बिखरती  …
मानो,
शब्दों  का खंडर हो ,
और मैं , एक जोगी  …
जिसे मिल गया हो -
रात बसर करने के लिए -
एक मनचाहा सन्नाटा !

जहाँ बनती - बिगड़ती पंक्तियाँ -
- बनी थीं सेज  …
जहाँ हवा थी -
-अलंकारों से अलंकृत  …
और, छत से टपक रहा था -
-कल्पनाओं का सलिल !

जहाँ दीवार की तरेड़ों से -
- आ रही थी  …
… किसी अधूरी उमंग की -
- ढलती कसक की -
-एक-आधी रश्मि !
और,
यादों के जुगनू -
- अल्फ़ाज़ों की ईंटों से -
- गुफ्तगू कर रह थे !

कब आँख लग गयी  …
कब पहर बीत गया  ....
न मैं जान पाया ,
न  जोगी मन !
सुबह तकिये के पास -
ठण्ड से -
-एक कविता कांप रही थी !

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