A dream....and You!
Reminiscences from my diary
June 29, 2009 Monday
7 p.m.
रूई - से फाहों से घिरे नभ तले ,
नील - सलिल के किनारे ,
एक कल्पना बोई थी …
मन ने -
मानस ने -
मानस ने -
नंगे पाँव चलूँ मैं …
कुछ तपते -
कुछ ठंडे बालू पर -
और,
चुभें छोटे छोटे कंकण -
उन नंगी एड़ियों तले !
आँखें बंद - बंद होती जाएँ -
मदमस्त बयार से ,
जो ,
अपने साथ ले उड़ाने का -
षड़यंत्र रचे …
और कोशिश करती रहे …
दूर कहीं से -
किसी दूसरे आसमान से ,
ठंडी हवा से ठंडी होती रश्मियाँ -
स्पर्श कर रहीं हों …
मुझे -
और मेरे मानस को !
और …
कुछ ही दूर हो ,
नारियल के-
ऊंचे - ऊंचे ,
लहलहाते -
पेड़ों की एक लम्बी कतार …
जिनकी फुनगियों से -
छन रही हो -
वही -
ठंडी हवा से ठंडी होती रश्मियाँ !
और …
फेनिल उर्मियाँ पखार रहीं हों -
मेरे नंगे पांवों को ,
मेरे मन को ,
मानस को …
और ,
थामी हो उंगली मैंने ,
किसी अनजाने - से अपने की …
किसी साथी की …
साथी -
मेरे मन का -
मानस का !!
Beautiful... reminded me of 'Ek hi khwab kai baar dekha hai' by Gulzar I think from Kinara movie.
ReplyDeleteThis is my first ever poem....:) wrote it when i was in second year of graduation!
ReplyDeleteWow!
ReplyDeleteCollege years often bring out poetry in students :)