I yearn for you, sky!
Reminiscences from my diary ...
January 3, 2012
750, IISc, Bangalore
एक कतरा आसमान छूने की तमन्ना ,
अक्सर मचल - सी जाती है -
बौराई बयार जब कहीं से -
- कोई जानी - अनजानी - सी महक ले आती है !
फिर सोचता हूँ ,
इन बैरी बादलों की भीड़ कैसे पार करूँ !
लोग इन्हें अपना कहते हैं,
पर, मैं इनसे कैसे इतना प्यार करूँ !
जब सोचते -सोचते अचेतन हो जाता हूँ -
और, मुझे देखकर आसमान भी दुःखी हो जाता है ,
तब थक हारकर फिर से , हाँ, फिर से …
मुझे अक्षरों का सेतु नज़र आता है !
यही चाह रहती है ... काश! ये तो ले जाएँ मुझे -
- उस एक कतरे के पास …
जो है कई इंद्रधनुषों से परे -
- सात समुंदर पार !
वहां …
… जहाँ सिर्फ 'मैं' हूँ ,
न कोई बंधन , न कोई राग !
न कोई दीवाली , न फाग !
पर सेतु बनाते - बनाते,
डर - सा लगने लगता है !
या फिर बेचैनी !
अगर ये अक्षर उड़ चले तो !
या फिर, सात समुन्दर में डूब गए तो !
बादलों की भीड़ में खो गए तो !
फिर …
फिर क्या होगा !!
पर फिर मैं और मेरा मानस एक - दूसरे को समझाते हैं !
यदि अक्षर भी साथ नहीं रुकेंगे , तो भी …
मेरे पास रह जाएगी -
मेरी आधी सी -
अधूरी - सी -
एक कतरा आसमान छूने की तमन्ना … !
Wow! moving! Can relate.
ReplyDeleteReminds me of 'Katra katra jeene do...' :)
Keep writing!
J
(PS: noticed it was written on the date of my b'day :))
DATE NOTED! :) :) :)
DeleteThat longing..that craving...
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