Alas! You faded away, again!
Reminiscences from my diary
Nov 22, 2014 Saturday
9:15 PM
Murugeshpalya, Bangalore
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से -
मन बोझिल - सा था ,
पिछले कुछ दिनों से !
आज शाम भी जब ,
उदासीन - सा मैं -
- ऑफिस से निकला -
- तो कुछ अनमना - सा था !
पर , सामने नज़र पड़ी तो देखा -
- गुलमोहर के पेड़ से सटा -
- तू खड़ा था ,
और हमेशा की तरह -
- मुस्कुरा रहा था !
न जाने कब से इंतज़ार कर रहा था तू !
उस एक पल , साँस में साँस आ गयी थी ,
मानो -
सारी थकान -
सारी चिड़चिड़ाहट -
पीछे 'गोल्फ कोर्स ' के तालाब से आती -
- ठंडी हवा -
- अपने साथ बहा ले गयी हो !
सड़क पार कर तेरे पास आया-
- और, बातों का सिलसिला -
- कुछ ऐसा शुरू हुआ ,
जैसे कब से दबी हों , और -
बाहर आने के लिए ,
या यूँ कहूँ -
- तेरे सामने बाहर आने के लिए -
- झटपटा रहीं हो !
डूबते लाल सूरज की हल्की लाल रोशनी में -
- झीनी धूप के साये -
तुझते बातें करते करते -
तेरी बातें सुनते सुनते -
शिकायतें करते करते -
गप्पे लड़ाते लड़ाते -
नग्में गाते गुनगुनाते -
और , रास्ते में आते -
शिव के -
काली के -
साईं के मंदिरों पर -
- माथा टेकते टेकते -
कब वापसी का इतना लम्बा सफर -
- मिनटों में तय हो गया -
पता ही न चला !
चलता भी कैसे -
तू जो था साथ !
बीच बीच में ,
कभी कोई उड़ान भरता हवाई जहाज -
हमारी बातें भंग करता -
- तो कभी पीछे कहीं -
- बहता सलिल गूँज उठता !
अभी पुलिया आने ही वाली थी -
- कि अचानक से,
पीछे से आती किसी गाड़ी ने -
- एक तीखा , लम्बा हॉर्न दिया !
पीछे मुड़ा तो गाड़ी वाले का -
- तमतमाया चेहरा देखा …
और, वापस मुड़कर देखा -
तो आज भी मैं , अकेला ही -
- ऑफिस से घर जा रहा था … !
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