An exquisite fear
Reminiscences from my diary
Sept 23, 2011
2:30 A.M.
GFC, IISc, Bangalore
आज भी एक रेशमी धुंधलका - सा है ,
जब याद आता है -
- रस - वितान , संज्ञाहीन चीड़ के ठूंठों से -
झाँकता चाँद -
और, उससे आलिंगन की चाह रखता -
उस नदी का सलिल -
तब नहीं जानता था -
गंगा थी , यमुना थी , या ब्यास -
मुझे तो बस, वह गर्जनाद -
वह शोर याद आता है -
पत्थर भी मानो , कांप रहे थे -
और, कांप रहा था -
मैं भी …
पर सर्दी से या भयावहता से -
नहीं जानता !
चारों ओर शांत, श्वेत पहाड़ -
ऊँचे - ऊँचे -
और नीचे , वे उर्मियाँ , वे पाषाण -
मणिकरण के गुरद्वारे के उस छज्जे पर -
एक अलग - सा डर-
एक अलग - सी दहशत महसूस की थी !
वही खूबसूरत - सा डर -
वही खूबसूरत - सी दहशत -
फिर से महसूस करना चाहता हूँ !
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