The Pain And The Poison
Reminiscences from my diary
Sep 17, 2013
Tuesday 4:30 pm
GS, Bangalore
गीले जंगलों से -
भीगे झुरमुटों से -
छन - छन कर आती रही ,
वही पुरानी टीस -
और,
मन में, मानस में, काया में,
रूह में भी -
दंश - सी चुभती रही !
आज उस बंजर राह पर -
मुद्दत बाद , अचानक ही -
जब कोई आहट हुई -
तो -
मचल - सी गयी टीस, और -
खोजने लगी -
- उस बटोही को,
हो जिसके पास -
मुक्ति का कोई उपाय !
आज जब फिर से टीस तड़पी -
तो एक बार, फिर -
- मथने लगी ,
निराशा के ताने बाने में -
- उम्मीद के कच्चे धागे !
भभक - सी गयी -
- उंस की , आशा की -
एक लौ !
फिर चुनने का मन किया -
उसी बंजर राह में बिखरे -
- उन सुन्दर पलों को !
अरसे बाद -
हूक भरी टीस ने ...
सवेरा नया लगा, और खुशबू -
जानी पहचानी !
एक नए दर्द की लालसा -
हल्का -हल्का डर -
और,
न जाने कितने सवाल -
मूक , निरुत्तर !
सोचते - सोचते -
तड़पते - मचलते - मुस्कुराते -
दंश पी गयी अपना -
टीस -
नीलकंठ हो गयी आज !
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