That dying breath of mine!
Reminiscences from my diary
Aug 11, 2016
Thursday, 11:30 AM
In train from SRE to NDLS!
मेरी एक श्वास -
- न जाने , कब से -
बिलख रही है -
तड़प रही है !
बस एक ही ख्वाहिश रखती है -
तेरी !
पर क्या करे -
बदकिस्मत है !
तुझे देखने की चाह -
एक पहर से दूसरे पहर -
दूसरे से तीसरे -
और धीरे धीरे -
शून्य में खोती जा रही है !
हर एक श्वास के साथ -
मेरी वह बदकिस्मत श्वास -
मिन्नतें करती फिरती है -
हर पल से -
बीतते समय के हर अणु , हर इकाई से -
कि बस ! एक बार और -
हाँ, बस एक बार -
तेरा दरस दिख जाए !
एक बार और -
तुझे जी भर के निहार पाए !
एक बार और -
तेरी श्वास में घुल जाए !
एक बार और -
तेरे स्पर्श में सिमट जाए !
मोक्षदायिनी गंगा के -
- सलिल में, सदा के लिए -
- तर जाएगी ...
... यदि ऐसा हो पाया !
हिमालय में बैठे -
- किसी अघोरी की चिलम में -
- आद्यांत रम जाएगी ...
... यदि ऐसा हो पाया !
गोविन्द को अलंकृत करते -
- वैकुण्ठ में किसी कमल - सी -
- चिरायु हो जाएंगी ...
... यदि ऐसा हो पाया !
एक बार फिर जी उठेगी मेरी श्वास!
अमर हो जाएगी मेरी श्वास !
अमर हो जाएगी मेरी श्वास !
No comments:
Post a Comment