Wish I were your craving too!
Reminiscences from my diary
Oct 31, 2016, Monday
03:00 pm
GS, CD, Bangalore
ज़रूरतों और आदतों की भी -
एक अपनी ही खींचा - तानी चलती है -
एक अजीबोगरीब - सा खेल -
- जहाँ मैंने, अक्सर ,
ज़रूरतों को जीतते, और -
- आदतों को हारते हुए पाया है !
अब देखो न ...
अगर तुम्हारी और अपनी ही बात करूँ -
तो जितना भी वक़्त -
- हम साथ रहे ...
... मैं शायद तुम्हारी ज़रुरत बना रहा !
काश ! तुम ये जान पाते कि -
- हर उस पल -
- जब तुम बहुत आसानी से -
मुझे अपनी ज़रूरतों के हिसाब से -
ढाल रहे थे ..
.. तब, तुम खुद -
- मेरी आदतों में ढल रहे थे !
... और फिर एक दिन -
वक़्त बदल गया -
हालात बदल गए -
तुम भी बदल गए -
तुम्हारी ज़रूरतें पूरी हुईं !
नई ज़रूरतें आईं, और तुम -
- नईं ज़रूरतें को मुकम्मल करने वाले -
- किसी 'काबिल' की तलाश में -
- आगे बढ़ चले !
पीछे रह गया मैं -
- और मेरी आदतों में रजे तुम !
तुम मुझे जीत गए थे, और मैं -
- हमेशा के लिए तुम्हे हार चुका था !
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