Tuesday, 1 November 2016

Wish I were your craving too!



Reminiscences from my diary

Oct 31, 2016, Monday
03:00 pm
GS, CD, Bangalore



ज़रूरतों और आदतों की भी -
एक अपनी ही खींचा - तानी चलती है -
एक अजीबोगरीब - सा खेल -
- जहाँ मैंने, अक्सर ,
ज़रूरतों को जीतते, और -
- आदतों को हारते हुए पाया है !

अब देखो न  ...
अगर तुम्हारी और अपनी ही बात करूँ -
तो जितना भी वक़्त -
- हम साथ रहे  ...
... मैं शायद तुम्हारी ज़रुरत बना रहा !
काश ! तुम ये जान पाते कि -
- हर उस पल -
- जब तुम बहुत आसानी से -
मुझे अपनी ज़रूरतों के हिसाब से -
ढाल रहे थे  ..
.. तब, तुम खुद -
- मेरी आदतों में ढल रहे थे !

... और फिर एक दिन -
वक़्त बदल गया -
हालात बदल गए -
तुम भी बदल गए -
तुम्हारी ज़रूरतें पूरी हुईं !
नई ज़रूरतें आईं, और तुम -
- नईं ज़रूरतें को मुकम्मल करने वाले -
- किसी 'काबिल' की तलाश में -
- आगे बढ़ चले !
पीछे रह गया मैं -
- और मेरी आदतों में रजे तुम !

तुम मुझे जीत गए थे, और मैं -
- हमेशा के लिए तुम्हे हार चुका था !










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