...Coffee, Books and Stories!
Reminiscences from my diary
Oct 15, '16 Saturday
11:30 AM
Atta Galatta, Bangalore
यहाँ -
कुछ किताबें !
असल में, कुछ नहीं -
बहुत किताबें हैं !
आसपास कुछ लोग बैठे हैं !
लेखक लगते हैं -
दार्शनिक या विचारक से -
पर आम से !
एक सन्नाटा सा पसरा हुआ है !
खौफ़ वाला सन्नाटा नहीं -
सुकून वाला सन्नाटा !
ये लेखक अपने अंदर डूबे से -
मालूम पड़ते हैं !
एक अलग ही दुनिया में खोये लगते हैं -
और उस दुनिया से इस दुनिया का रास्ता -
स्याही से माप रहे हैं !
सोच रहा हूँ -
इस एक कमरे की हवा में -
कितनी ही कहानियाँ बह रही हैं !
महज़ किताबों में नहीं, बल्कि -
इन लोगों में !
कभी अपने में सिमटी और कभी -
इधर उधर तांक - झांक करती -
इनकी आँखों में !
सैकड़ों बातों से -
चिंताओं से घिरे -
इनके मस्तिष्क में !
न जाने कितनी ही वेदनाओं से जूझते -
स्मृतियों को समेटे -
इनके हृदय में !
कहानियाँ ही कहानियाँ -
कहानियाँ में कहानियाँ -
छोटी - छोटी कहानियाँ -
कभी न ख़त्म होने वाली कहानियाँ -
आम कहानियाँ -
ख़ास कहानियाँ-
उफ्फ !
जितना सोचता हूँ, उतना पाता हूँ -
एक व्यक्ति की सत्ता -
उसका अस्तित्व -
कितना विशाल, कितना विस्तृत है !
ऐसा लगता है, मानो -
यहाँ बैठा हर व्यक्ति-
हर लेखक -
अपने आप में आसमान है -
या उससे भी बढ़कर -
एक ब्रह्माण्ड -
जिसमें डूबे हुए हैं -
कितने ही सूरज -
कितने ही चाँद -
कितनी ही आकाश - गंगाएँ !
पर एक बात तो माननी होगी -
इस एक पल -
जब इनकी रूहें -
अपने ही अंदर कुछ टटोल -सा रही हैं -
तो एक अलग ही कांति,
एक अलग ही शांति,
एक अलग ही मुस्कान -सी -
मालूम पड़ती है -
इनके होठों पर !
पर, अब कुछ ही देर में -
ये अनजान लोग -
शायद फिर से अनजान हो जायेंगे !
बिखर जायेंगे!
और इनमे सिमटी कहानियाँ -
कुछ और सिमट जाएँगी -
कुछ नए रूख अपनाएंगी !
सोचता हूँ, काश!
क्या ऐसा कायनाती सुकून -
- कुछ देर और नहीं ठहर सकता था !
(written during an experiential poetry event at a coffee house/book store)
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