Saturday, 13 May 2017

Moments 'n' Memories, dispersed!



Reminiscences from my diary

May 12, 2017
Friday, 05:00 pm
GS, CD, Bangalore


आज, कुछ यूँ सा हुआ कि -
तुम्हे याद करते - करते -
कब शाम -
मेरे चाय के कुल्हड़ में घुल गई -
और मुझमें उतर गई -
- पता ही न चला !

*****

हुआ तो कुछ यूँ भी था एक दफा, जब -
अपने कमरे की खिड़की पर -
- तुम्हारा इंतज़ार बाँधा था !
जानते हो ? आज भी तुम्हारा इंतज़ार -
- उसी खिड़की की टूटी जाली में -
- उलझा पड़ा है !

*****

एक बार, पलकों से -
- चाँद काटा था मैंने !
और पहरों पहर रात खेई थी !
कुछ रंजिशें थी शायद -
- उस पार भी !
न भोर मिली , न तुम !

*****

वो अलसाई - सी शब,
सावन का सलिल -
और सलिल से सीला मन !
तीनों ने कितनी बार , कितनी ही -
- कहानियाँ गढ़ी हैं ! पता है -
- उन कहानियों के बाहर भी तुम, अंदर भी तुम !

*****

1 comment:

  1. Adhbut. Kahaniyon ke bahar bhi Tum Aur andar bhi Tum ❤️

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