Strings yet attached!
Reminiscences from my diary
Apr 5, 2017
10 pm
In flight from Delhi to Bangalore
बरस बीत गए हैं तुम्हे गए हुए,
पर न जाने कैसी गिरहों में -
- तुम मुझे बाँध गए कि -
आज तक, उनसे मेरी -
- रिहाई नहीं हुई !
जितनी कोशिश, जितनी जद्दोजहत -
करता हूँ -
इन गिरहों को सुलझाने की -
उतना ही उलझता चला जाता हूँ !
इन धागों का -
- या तो कोई अंत नहीं है,
और अगर है, तो शायद -
- तुम पर है !
शायद इन गिरहों के ओर - छोर -
- तुम्हारी उँगलियों में कसे हुए हैं !
जितनी ही दूर -
- तुम जाते जा रहे हो,
ये धागे मुझे उतना ही -
- कसते जा रहे हैं !
जाते - जाते, कहीं तुम -
- इन गिरहों में -
कोई अफसून तो नहीं फूँक गए थे ?
लगता तो यही है जैसे -
- तुमने मुझे बांधकर -
- अपना बदला लिया हो !
तुम्हारे साथ चलने के लिए मना कर देने का -
- बदला !
तुम्हे अकेले सात - समुन्दर पार जाने देने का -
- बदला !
तुम्हे बीच मझदार में छोड़ देने का -
- बदला !
हाँ ! यही बात है , लगता है ...
खैर ...
अब तुम नहीं हो !
हैं, तो बस ये गिरहें -
मेरी रूह को कसते ये धागे -
जो मेरी ज़िस्त से रु-ब-रु कराती -
- हर सांस के साथ -
एहसास दिलाते हैं -
तुम्हारे होने का भी -
तुम्हारी न होने का भी !
Hey Shanu! This is beautiful... Pain can be beautifully depicted not only over a canvas but also on a piece of paper... You prove it right... It's touching...
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