Saturday, 3 June 2017

Crucifix


Reminiscences from my diary

June 2, 2017
10:45 pm
GS, CD, Bangalore


फ़क़त इतनी - सी बात है कि -
तुम्हे अपनी परवाज़ का ख़ुमार रहा हमेशा -
और मुझे -
- तुम्हारी कुर्बत का ग़ुमान !

और बख़्त का रक्स देखो ज़रा -
- इस ख़ुमार और ग़ुमान की कश्मकश में -
- हम कितनी दूर निकल आए हैं !

... असल में, 'हम' नहीं , तुम !
हाँ !
सिर्फ़ तुम दूर निकल आए हो !
मैं तो वहीं हूँ  ...
उसी सालिब पर !
तुम्हारे उन्स में -
मुसलसल मरता हुआ  ...


[ परवाज़     -  flight
   कुर्बत       -  closeness
   बख़्त        -  destiny
   रक्स         -  dance
   सालिब     -   crucifix
   उन्स         -  companionship
   मुसलसल  -  slowly ]

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