Crucifix
Reminiscences from my diary
June 2, 2017
10:45 pm
GS, CD, Bangalore
फ़क़त इतनी - सी बात है कि -
तुम्हे अपनी परवाज़ का ख़ुमार रहा हमेशा -
और मुझे -
- तुम्हारी कुर्बत का ग़ुमान !
और बख़्त का रक्स देखो ज़रा -
- इस ख़ुमार और ग़ुमान की कश्मकश में -
- हम कितनी दूर निकल आए हैं !
... असल में, 'हम' नहीं , तुम !
हाँ !
सिर्फ़ तुम दूर निकल आए हो !
मैं तो वहीं हूँ ...
उसी सालिब पर !
तुम्हारे उन्स में -
मुसलसल मरता हुआ ...
[ परवाज़ - flight
कुर्बत - closeness
बख़्त - destiny
रक्स - dance
सालिब - crucifix
उन्स - companionship
मुसलसल - slowly ]
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