Saturday, 29 July 2017

Will thou meet thou?



Reminiscences from my diary

July 28, 2017
05:00 PM 


लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं -

क्या मुझे तुम्हारी याद नहीं आती !
और मैं  ... बस मुस्करा देता हूँ !
अब उन्हें कैसे समझाऊँ कि -
-तुम हमेशा मेरे साथ ही तो रहते हो !

अरे ! हँस  क्यों रहे हो ?
मैं सच कह रहा हूँ !
एक वक़्त के बाद शम्स रूमी से अलग थोड़े ही था !
मैंने अपने तुम में तुम्हारे तुम को -
- इस कदर समेट लिया है  कि -
अब मुझे तुम्हारे न होने का एहसास -
- महसूस ही नहीं होता !

यूँ  तो मैं ही नहीं , तुम भी जानते हो कि -
गाहे बगाहे -
जाने अनजाने ही सही -
- पर अब बदल गए हो तुम !
इतना कि अगर तुम तुम से मिलोगे -
- तो शायद  ... 
... तुम तुम को पहचान ही नहीं पाओगे !

... पर भी कहता हूँ तुम्हें -
- मुझसे न सही , 
आओ मिलने कभी तुमसे ही !
क्या पता -
तुम्हारी ही कोई भूली - बिसरी याद -
कोई बात -
कोई किस्सा -
कोई नुक्कड़ -
कोई चेहरा -
कोई मुस्कराहट -
कोई बारिश -
कोई ठहाका -
कोई रात -
कोई चाँद -
कोई लम्हा -
कोई 'तुम' -
कौंधा ही जाए तुम्हें !

लेकिन ,
एक बात का ख़्याल रखना !
वापिस जाते वक़्त -
- तुममें से कुछ भी , तुम्हें -
- साथ ले जाने का -
- न हक़ है, न इजाज़त !

आखिर दो - दो बार क़त्ल कर के क्या मिलेगा तुम्हें ?








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