Thursday, 14 September 2017

This language is not a language!


Reminiscences from my diary

September 14, 2017
Thursday 10:30 PM
Murugeshpalya, Bangalore


तू पथ - पथ की साथी है,
तू पग - पग की काठी है।
हृदय की अग्नि में जो पिघले -
तू उन शब्दों की बाती है।

हिंदी - तू सहचारिणी है  ...

तू पाथेय पीड़ा का मेरी,
मेरे तम की रश्मि तू है।
औ' गोधूलि की धूल में लिपटी -
स्वप्नगामिनी निशा भी तू है।

हिंदी - तू निशाचरणी है  ...

कटुता हरती, लघुता हरती, तू -
स्मृति अनश्वर बनाती है।
मन - मानस के द्वेष भी हरती,
विस्तृत स्नेह कर जाती है।

हिंदी - तू मृदुभाषिणी है  ...

करूँ जो मानवीकरण तेरा मैं,
तू मातंगी मीनाक्षी है।
प्रेम - राग से आलिंगनबद्ध, तू -
मन्मथ, तू कामाक्षी है।

हिंदी - तू प्रणयदायिनी है  ...

तू सुर, लय और ताल पिरोती,
संगीत अजर कर जाती है।
एकांत, हास, क्रंदन रूदन, हर -
भाव अमर कर जाती है।

हिंदी - तू स्वरागिनी है  ...

तू श्याम रंग कान्हा - सी चंचल,
नीलकंठ, गजगामिनी है।
निसर्ग मेरा, तू मेरा स्वर्ग,
यज्ञ - समीधा - सी पावनी है।

हिंदी - तू मोक्षदायिनी है  ...

निदाघ, वसंत तेरे पाहुना,
शरद - प्रहार अपनाया है।
श्रावण को आश्रय देती तू -
प्रवाह सलिल - सा पाया है।

हिंदी - तू ऋतुगामिनी है  ...


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