Scattered across the dark
Reminiscences from my diary
Friday Jan 26, 2018
01:50 AM
Murugeshpalya, Bangalore
कोरे कोहरे में गुमा पिटारा -
नीर आँख का रिस - रिस कर -
- सावन - सावन हो जाएगा !
शोर में घुटता मौन एक दिन -
- चीत्कार बन जाएगा !
बिसरा अमृत यूँ अचानक -
- गरल - गरल कर जाएगा !
कितने मिहिरों ने ढापा अब तक -
- पर कब तक छिप पाएगी ?
आज याद रात में बिखरी है तो -
- दूर तिमिर तक जाएगी !
नीड़ को जाता पंछी क्या -
क्यारी - क्यारी में दबा बीज -
- क्या कोई सलिल सिंचाएगा ?
क्या पलस्तर झड़ती दीवारों पर -
- रंग नया चढ़ पाएगा ?
क्या फिर अजान की आवाज़ों में -
- अबीर फ़ाग का छाएगा ?
क्या वो अटरिया सप्तर्षि से -
- फिर कभी बतियाएगी ?
आज याद रात में बिखरी है तो -
- दूर तिमिर तक जाएगी !
हर पल, हर दिन फिर कोई क्या -
- यूँ बिन बात हँसाएगा ?
कभी शरारत, कभी ठिठोली -
- कभी गालों को फुलायेगा ?
क्या दीप जली उन रातों में -
- कोई गरम कोट फिर भाएगा ?
और दूर बिन कहे जाने पर फिर -
- दिल को तर कर जाएगा ?
क्या फिर से नौ पन्नों की चिट्ठी -
- मेरे पते पर आएगी ?
आज याद रात में बिखरी है तो -
- दूर तिमिर तक जाएगी !
क्या पौष का ढलता सूरज फिर -
- सीली मिट्टी नहलाएगा ?
क्या सकुचाता - सा बूढा वट -
- फिर और पास आ जाएगा ?
क्या हवा में घुलते शब्दों से -
- हर तिनका फिर रंग जाएगा ?
और बहमाया - सा कोई कबूतर -
- अपना पंख भुलाएगा ?
क्या फिर सुजाता किसी बुद्ध को -
- मुक्ति - मार्ग दिखाएगी ?
आज याद रात में बिखरी है तो -
- दूर तिमिर तक जाएगी !
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