Will the new year be really new?
Reminiscences from my diary
Dec 31, 2017
Sunday 11:45 PM
Murugeshpalya, Bangalore
पिछली कुछ शामों से चर्चा है कि -
कल की तारीख़ -
एक नयी - नवेली भोर लाएगी ...
एक नया रोशन दिन ...
एक खूबसूरत - सी नयी शाम ... !
जब से सुना है -
- एक उधेड़बुन में हूँ !
मेरी सुबह नयी कैसे होगी ?
कल क्या नींद में डूबे तुम -
- मुझे नींद से जगाने आओगे ?
कल क्या फिरआँख मलते - मलते, तुम्हारी कोई पलक -
- मेरे तकिये पर आकर ठहर जायेगी ?
क्या कल सुबह, मेरी कॉफ़ी का मग -
- तुम्हारे चाय के प्याले से गुफ़्तगू करेगा ?
नहीं न ... !
फिर मेरी भोर नयी - नवेली कैसे हुई ?
दिन भी तो वैसा ही होगा !
मेरे जैसा !
अपने में ही डूबा - सा !
पुरानी किताबें -
पुराने अख़बार -
पुराने गाने -
पुरानी यादें !
नया तो तब होता, जब -
कभी तेज़, कभी गुनगुनी होती धूप में -
तुम और मैं -
पुरानी सड़कों को सजाते पुराने किताबघरों की -
- ख़ाक छानते फिरते !
पर अब क्या नयी सपाट राहों का मुसाफ़िर -
- पुरानी पगडंडियों को पहचान पायेगा ?
नहीं न ... !
फिर मेरा दिन नया और रोशन कैसे हुआ ?
और जब वही पुरानी भोर होगी -
वही पुराना दिन होगा -
तो फिर नयी गोधूलि की उम्मीद कैसे करूँ ?
क्या कल शाम, मेरी आँख की कोर में -
- कोई नमी आकर नहीं ठहरेगी ?
क्या कल शाम, मेरे पाँव रोज़ की तरह -
- अपनी कॉलोनी की हरी संकरी गलियाँ नहीं नापेंगे ?
क्या कल की शाम तुम मेरे साथ -
- मेरी ही कोई कविता सुनोगे ?
क्या कल की शाम तुम मुझसे -
- अपनी आपबीती साझा करोगे ?
नहीं न ... !
फिर मेरी शाम नयी और खूबसूरत कैसे हुई ?
लोग भी न ... !
आखिर पहली जनवरी को भी -
- सलिल बरसता है भला ... !
No comments:
Post a Comment