Sunday, 31 December 2017

Will the new year be really new?



Reminiscences from my diary

Dec 31, 2017
Sunday 11:45 PM
Murugeshpalya, Bangalore


पिछली कुछ शामों से चर्चा है कि -
कल की तारीख़ -
एक नयी - नवेली भोर लाएगी  ...
एक नया रोशन दिन  ...
एक खूबसूरत - सी नयी शाम  ... !

जब से सुना है -
- एक उधेड़बुन में हूँ !
मेरी सुबह नयी कैसे होगी ?
कल क्या नींद में डूबे तुम -
- मुझे नींद से जगाने आओगे ?
कल क्या फिरआँख मलते - मलते, तुम्हारी कोई पलक -
- मेरे तकिये पर आकर ठहर जायेगी ?
क्या कल सुबह, मेरी कॉफ़ी का मग -
- तुम्हारे चाय के प्याले से गुफ़्तगू करेगा ?

नहीं न  ... !

फिर मेरी भोर नयी - नवेली कैसे हुई ?

दिन भी तो वैसा ही होगा !
मेरे जैसा !
अपने में ही डूबा - सा !
पुरानी किताबें -
पुराने अख़बार -
पुराने गाने -
पुरानी यादें !
नया तो तब होता, जब -
कभी तेज़, कभी गुनगुनी होती धूप में -
तुम और मैं -
पुरानी सड़कों को सजाते पुराने किताबघरों की -
- ख़ाक छानते फिरते !
पर अब क्या नयी सपाट राहों का मुसाफ़िर -
- पुरानी पगडंडियों को पहचान पायेगा ?

नहीं न  ... !

फिर मेरा दिन नया और रोशन कैसे हुआ ?

और जब वही पुरानी भोर होगी -
वही पुराना दिन होगा -
तो फिर नयी गोधूलि की उम्मीद कैसे करूँ ?
क्या कल शाम, मेरी आँख की कोर में -
- कोई नमी आकर नहीं ठहरेगी ?
क्या कल शाम, मेरे पाँव रोज़ की तरह -
- अपनी कॉलोनी की हरी संकरी गलियाँ नहीं नापेंगे ?
क्या कल की शाम तुम मेरे साथ -
- मेरी ही कोई कविता सुनोगे ?
क्या कल की शाम तुम मुझसे -
- अपनी आपबीती साझा करोगे ?

नहीं न  ... !

फिर मेरी शाम नयी और खूबसूरत कैसे हुई ?

लोग भी न  ... !

आखिर पहली जनवरी को भी -
- सलिल बरसता है भला  ... !





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