Saturday, 16 June 2018

The leftovers!

Reminiscences from my diary

June 16, 2018
Saturday 10:15 pm
Murugeshpalya, Bangalore


जब कोई अपना -
कोई बहुत अपना -
जैसे -
भाई , बहन , दोस्त , हमदर्द -
- घर छोड़कर हमेशा के लिए कहीं दूर चला जाता है -
तो -
खुद को -
खुद की कितनी ही चीज़ों में -
छोड़ जाता है !

चीज़ें, जैसे -
स्याही से सूखा पेन
बैंकों से आई चिट्ठियाँ
हस्ताक्षर किए दस्तावेज़
बटन टूटी बुशर्ट
जूते की पालिश
टूटी चप्पल
मुड़ी - तुड़ी पासपोर्ट साइज़ फोटो
किसी सुन्दर जगह से खरीदा कोई पोस्टकार्ड
एक खोया मौजा
टेबल लैंप का फ्यूज़ बल्ब
कभी कभी पर्सनल डायरी भी
चीज़ें !

जब जब सफ़ाई होती है घर की
दिवाली से पहले -
किसी मेहमान के आने से पहले -
या कभी यूँ ही -
तब तब ये चीज़ें -
न जाने कहाँ कहाँ से बाहर निकल आती हैं -
हाथों से टकराती हैं -
ख्यालों के मकड़जाल बुनती हैं -
बिसरि स्मृतियों का डंक चुभोती हैं !
एक चीज़ फेंको
तो दो और निकल आती हैं
और  ...
हर चीज़ के फेंकने के साथ ही -
वह अपना -
वह बहुत अपना -
जैसे -
भाई , बहन , दोस्त , हमदर्द -
- एक बार फिर घर छोड़कर हमेशा के लिए कहीं दूर चला जाता है !













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