Thursday, 16 May 2019

My blood, red!

Reminiscences from my diary

May 16, 2019
Thursday, 7 pm
Murugeshpalya, Bangalore


स्ट्रीट लाइट को लाल से हरा होता देखते - देखते
और ज़ेबरा - क्रॉसिंग पर चलते - चलते
मेरा बायाँ हाथ
एक दुनिया समाये -
- बाएँ काँधे झूलते बस्ते में
दस का नोट टटोल रहा था !

अचानक ही कुछ चुभा !
कुछ नुकीला, कुछ पैना !
हाथ बाहर निकाला तो देखा -
तर्जनी के नाखून के पास
खून चमक आया था !
एकाध कोशिका लहूलुहान हुई थी शायद !
दर्द हुआ भी और नहीं भी !

आज मुद्दत बाद मैंने अपना खून चखा !

बस्ते में झाँका तो पाया -
कॉम्बिफ्लेम के पत्ते का कोना अभी भी घूर रहा था !
चौदह में से -
- तेरह गोलियों से खाली वह पत्ता
वापिस बस्ते में इसलिए डाल दिया कि
आज नहीं तो कल, वक़्त - बेवक़्त,
मुझे इसकी ज़रुरत पड़ेगी ही !

गुलमोहर के गलीचे नापते नापते
सोच रहा हूँ -
कैसे एक कतरे लहू से
एक किस्सा, एक कविता, एक पल उपज जाते हैं !





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