Consciousness?
Reminiscences from my diary
Thursday, 11.30 pm
Saharanpur
मेरी चेतना
समाधि है
एक औघड़
सूफ़ी की
जिसकी
अधमुंदी आँखों में
बिखरा है एक
खुला आकाश
जिसने
कतरा कतरा होकर
भरी है
एक सुरंग
सुनो!
उस सुरंग के ओर छोर
किसी शम्स की
आँखों में खुलते हैं!
No comments:
Post a Comment