Sunday, 1 August 2021

Ashes to words

Reminiscences from my diary

Aug 01, 2021
Sunday, 0900 pm
Murugeshpalya, Bangalore


पता नहीं कब कहाँ 
कौन सा तारा टूटा कि 
एक ख्वाहिश मन में पिर गई !
पिरती ही चली गई !

यूँ तो मैंने अमरपक्षी होना कभी नहीं चाहा पर 
यह ज़रूर चाहने लगा हूँ कि 
अग्निदाह के बाद एक चमत्कार हो
और मेरी राख़ से उपजें 
शब्द!
शब्द जो बनते बनते बन जाएँ 
एक किताब!
कविता! कहानी! कहकहा! कुछ भी!
बस एक किताब!

ऐसा होने से एक उम्मीद तो रहेगी कि 
अगली बार ही सही 
क्या पता 
कभी कहीं 
किसी अमलतास के नीचे 
किसी सफ़र में
किसी खिड़की पर गर्दन टिकाये 
किसी आँसू की सीलन में 
पढ़ा जाऊँ
गढ़ा जाऊँ!


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