Listen O Moon!
Reminiscences from my diary
Jan 14, 2024
Sunday, 0015 IST
Murugeshpalya, Bangalore
अरे!
मैंने
कब से
नहीं देखा
तुम्हें !!
ऐसे
कैसे ...
... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो मैं घबरा-सा गया। यूँ तो कितने ही दिन बीत गए बिना कुछ लिखे हुए - न कश्मीर और उसके पीर-पंजलों के बारे में लिख पाया , न इमरोज़ के जाने का ग़म उकेरा, न रूमी के आने की ख़ुशी ज़ाहिर की, न ही रानीखेत की पगडंडियों में एक बार फिर खोने के बारे में डायरी से कुछ साझा किया ! बस एक लिस्ट बनाता जा रहा था कि जब मन करेगा तब लिखूँगा ! पर अभी इस एक पल ...
... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ ! मन कर रहा है कि तुम्हें इतनी चिट्ठियाँ लिखूँ , इतने पोस्टकार्ड भेजूँ कि तुम्हारी नाक में दम कर दूँ। कितने ही दिन बीत गए तुमसे बात किये हुए, इतनी बातें इकट्ठी हैं कि कहाँ से शुरू करूँ, नहीं जानता ! ख़ैर ... मैं तो मैं ... मैं तुम्हें नहीं देख पाया तो मियाँ तुम ही देख लेते !! इतनी तो साझेदारी है ही अपनी ! या तुम बस गुलज़ार के ही हो ? यूँ न करो ! आख़िर मैंने भी बड़ी शिद्दत से तुम्हें कितनी ही जगह टाँका है, तुम्हें उन सब जगहों का वास्ता ...
... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो एक आँख से बेचैनी फूट रही है और एक से शिकायत। तुम्हें तो पता है कि कैसे दोनों आँखों के रास्ते तुम मेरे पोर-पोर में उजास भरते हो, उन्माद भरते हो, भरते हो उम्मीद, मन की हूकों को सहने का लेप ! तब भी तुम गायब रहे ? वह भी इतना सारा ? अब तुम भी यूँ करोगे तो कैसे साँस आएगी ? आड़ा-तिरछा, आधा-पौना मुँह ही दिखा देते ! अब समझा कि आजकल आँख का पानी इतना खारा क्यों है ...
... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो बहुत-सी यादें - जो तुमने मुझसे लेकर अपने पास अपनी कोटरों में सहेजकर रख लीं थीं - अचानक ही सुलगने लगीं हैं, और मुझे लगता है सुबह तक मेरी हथेलियों पर छाले होंगे। पर तुम्हें क्या ? तुम रहो अपने कोप-भवन में ! अल्मोड़ा के साफ़ आसमान में करोड़ों तारों की टिमटिमाहट की तारीफ़ की थी मैंने। तुम्हें नहीं पूछा था। कहीं इसलिए तो ...
... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो मैं शिव को अर्ज़ी लगा रहा हूँ कि मना लें तुम्हें ... कि एक बार फिर तुम मेरे साथ-साथ रहो, मेरे साथ-साथ चलो ... कि फिर से मेरे साथ गली में बिखरी रात-रानी की गंध चखो ... कि फिर से मेरे साथ डॉक्टर-साब के घर के बाहर बिखरे हरसिंगार के फूल चुनो ... कि फिर से मेरा सपना बनो ... और फिर से, एक बार फिर से मेरी भोर बुनो ....
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