Saturday, 2 November 2013

THAT ANOTHER DAY..!!

Reminiscences from my Diary
October 29, 2013
11:30 P.M.
Murugeshpalya, Bangalore


आज एक बार फिर -
सूर्य का सृजन हुआ !
आज फिर ,  एक चाँद -
- फीका पड़ गया !
कोहरे के झीने कपडे से -
- चेहरा छुपाये ,
आसमान ने -
- लूट लिया निशा का घूंघट  …
… और ,
झड़ गए सभी सितारे !

बिना मेघदूत के ही आज -
- रश्मियों की धूल  उड़ाता -
चल दिया बादलों का कारवां !
सलिल के घड़े , आज फिर ,
टूटते - टूटते रह गए !
धूप के जूनून से -
परछाइओं की काया झुलस गयी !
समय का अर्जुन -
युगों के रथ पर सवार -
आज फिर, कृष्ण की बाट जोहता रहा !
इतिहास का मेहमान ,
चौके से -
- भूखा ही उठ गया !
आँख की कोर में ,
नमी -
- ठहरी ही रही !
आज भी पुरवाई -
अपनी दिशा -
- खोजती रही !

ढलती धूप के कहार ,
फिर से ,
संध्या की डोली लेने निकल पड़े !
आज फिर ,
अपने नीड़ को जाती गौरैया -
- चहचहाना भूल गयी !
आज फिर,
अपने घर को जाती सुंदरिया के -
- गले में बंधी  घंटी -
- नहीं बजी !
शामें नीरव थीं-
आज भी , नीरव ही रही !

और,
धीरे - धीरे  …
थोड़ी हिम्मत करता ,
थोडा घबराता ,
सकुचाता -
चीड़ के ठूंठों से -
फिर झाँकने लगा -
एक और चाँद!


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