Waters of the Sukhna, Reminiscences - 4
Reminiscences from my diary
Jan 7, 2011, 11:30 p.m.
A 118, Thapar, Patiala
जब दस साल पहले ,
सुखना ताल -
निर्जन - सा -
नैसर्गिक - सा हुआ करता था …
जब उस उन्मुक्त सलिल , और -
खुले आसमान के बीच -
ठंडी हवा बौरा जाया करती थी …
तब उस सुन्दर शाम में -
ठिठुरती सर्दी में -
सीढ़ियों के पास-
उस बौराई पवन से -
आलिंगन की चाह में -
खुला मन और खुली बाहें -
एक कल्पना संजो रही थी !
तभी -
वापसी की पुकार आई -
मैं तो लौट आया , पर -
गीली - सी -
बौराई - सी -
वह कल्पना वहीँ रह गयी !
बुनना चाहता हूँ , उसी कल्पना को -
और , संजो कर रखना चाहता हूँ उसे -
सदा -सदा के लिए !
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