Sunday, 18 September 2016


... and then, I remember you, again!


Reminiscences from my diary

April 30, 2012
09:30 AM

In flight from Bangalore to Delhi



जब शहतूत की गीली डाली से,
हर फल पक - पक  गिर जाता है !
तब टीस मचल जाती मन में,
और फिर से तू याद आता है !




जब भोर की पहली रश्मि, मेरे, 
गालों को छू जाती है !
पीछे - पीछे बैरन हवा भी ,
मुझसे लड़ने आ जाती है !
पर तू नहीं आता , तेरा स्पर्श -
रह रह मुझको तड़पाता है !
खुल जाती अधमुंदी आँखें तब ,
और फिर से तू याद आता है !



सावन की पहली बारिश जब,
मिट्टी को महकाती है !
और पपीहे की पीहू भी -
कानों में घुल जाती है !
पर तेरी ख़ामोशी से -
- सावन सूना पड़ जाता है !
बूँदें आंसू बन जाती हैं -
और फिर से तू याद आता है !


गुलमोहर के फूलों से जब,
पग पग यूँ सज जाता है !
हर वल्लरी पाती आश्रय, और, 
हर विटप भी खिल जाता है !
तब तेरी मुस्कान मेरी इन -
- आँखों में लौट आती है !
स्मृतियाँ कुछ बौरा जातीं-
और फिर से तू याद आता है !



सर्दी की ठंडी रातों में जब,
छत पर तारे गिनता हूँ !
और मेघों की छाया में जब,
चन्दा से बातें करता हूँ !
पर क्यों तेरा साया, तेरा -
- चेहरा नहीं दिख पाता है !
छा जाता तब कोहरा घन घन -
और फिर से तू याद आता है !











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