...worshiped!
Reminiscences from my diary
Oct 6, 2016 Thursday
10:00 am, GS, CD, Bangalore
न अधरों को सोम की तृष्णा,
न नयनों में परिश्रांत।
हर व्याधि को मुक्ति मिल जाए,
हर पीड़ा पाए प्रशांत।
'गर तू मेरा शिवालय बन जाए -
मिट जाएँ मेरे सभी क्लान्त।।
पद्माक्षी भी जल से भर जाए,
उग्र सलिल हो जाए शांत।
तेजोमय तेरा खंड खंड,
नभ से भी विस्तृत तेरा प्रांत।
'गर तू मेरा शिवालय बन जाए -
मिट जाएँ मेरे सभी क्लान्त।।
प्रेम सिंधु का तुझसे आदि,
तू गोधूलि, तू ही निशांत।
हर रूमी का तू ही शम्स,
हर मीरा का तू ही कान्त।
'गर तू मेरा शिवालय बन जाए -
मिट जाएँ मेरे सभी क्लान्त।।
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