Intricacies
Reminiscences from my diary
June 03, 2019
Monday, 06:00 pm
In flight to Bangalore
जब - जब तुम साथ नहीं होते हो,
तब - तब, तुम -
असल में -
बहुत करीब होते हो !
वहीं दूसरी तरफ -
जब - जब तुम सामने होते हो -
या तुमसे बात होती है -
तब - तब लगता है कि -
तुम, तुम नहीं हो !
कोई और हो, असल में !
कई मर्तबा सोचा है, समझने की -
- आधी - अधूरी कोशिश भी की है -
क्या वह 'तुम', जिसे मैं -
- अपने बहुत करीब पाता हूँ -
उस 'तुम' से वाकई अलग है -
- जिसकी तस्वीर या जिसकी आवाज़ -
- मैं
- यूँ ही
- गाहे बगाहे
कभी सुन लेता हूँ, कभी देख लेता हूँ ?
काश मैं यह सवाल
तुमसे पूछ पाता !
काश मैं यह उलझन
तुमसे साझा कर पाता !
ये बरस, जो मैंने -
तुम्हारे होते हुए भी -
तुम्हारे बिना -
तुम्हारी तड़प में बिताए हैं -
और -
तुम्हारे न होते हुए भी -
अपनी रिक्तता में -
तुम्हें घोला है -
बस, यही बरस -
हाँ, यही बरस मेरे सगे हैं !
तुम्हें इन बरसों के बारे में बताऊँगा, तो शायद -
पागल करार दिया जाऊँगा !
यूँ भी तुम, शायद -
अपने होने से जूझ रहे हो !
शायद तुम खुद को पहचानने की मशक्कत में -
- तार - तार उलझे हो !
तुम्हें एक और सवाल से -
तुम्हें मुझसे -
तुम्हें तुमसे -
रु- ब- रु कराऊँ भी तो कैसे ?
No comments:
Post a Comment