... yet another piece!
Reminiscences from my diary
Dec 07, 2019
Saturday 10:45 pm
Murugeshpalya, Bangalore
"हृदय में धँसा स्मृतियों का ध्वस्त प्राचीर
उस प्राचीर के यहाँ - वहाँ बिखरे अवशेष
उन अवशेषों की नींव से निकले वीरान अरण्य
और
उन अरण्यों में दबी - घुटी - मरी घोर चीत्कारें ...
... इन सबकी कोई थाह नहीं
और यदि है तो,
उस थाह का -
कोई मानदंड, कोई समीकरण नहीं ...."
तुमने वही कहा जो तुमने माना या -
मानना चाहा !
तुमने वही माना जो तुमने जिया या -
जीना चाहा !
मैंने कभी तुम्हारे आगे बढ़ते तेज़ कदमों को देखा
तो कभी
शून्य में घुलते शून्य को !
फिर -
जाते हुए तुम की ओर पीठ की -
कलम छिटकाया -
मुस्काया -
सकुचाया -
घबराया -
और -
एक नई कविता लिखने बैठ गया !
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