You could be but you!
Reminiscences from my diaryJuly 23, 2020
Thursday, 01:30 am
Murugeshpalya, Bangalore
सोचो ! अगर तुम होते -
एक दीवार
तो मैं, तुम पर
चढ़ता
उतरता
और फिर चढ़ता
एक मटमैला रंग होता !
और अगर होते तुम -
एक दरख़्त, तो ?
मैं तब बन जाता
तुम्हारी कोटर में छिपाई
निम्बोली, या
कच्चा आम, या
बचपन का कोई ग़ुम आना !
होने को तो तुम हो सकते थे -
कोई दरगाह
मैं हो जाता फिर
किसी मन्नत
किसी ख़्वाहिश
किसी ख़ुशबू में लिपटा
एक धागा !
अगर सोचूँ तुम्हें -
धूप
तो खुद को पाऊँ
तुम्हारी राख में
तुम्हारी राख से
साँस सींचती
अधबुझी आग !
और 'गर मानूँ तुम्हें -
अंजुली भर
तो मैं
तुम्हारी ओक में सिमट जाता
एक आँसू बनकर
या होकर
एक समंदर !
तुम कुछ भी हो सकते थे, बस -
सिर्फ़ तुम नहीं होना था तुम्हें !
हुआ यूँ कि -
तुम्हारे महज़ तुम होते ही
मैं मैं नहीं रहा ... !
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