Maurya
Reminiscences from my diary
June 23, 2020
Tuesday, 00:30 hrs
Murugeshpalya, Bangalore
याद है, कैसे वह पूरा दिन
झल्लाहट में बीता था तुम्हारा
और तुम्हें देख - देख मेरा ?
तकदीर दिन की ख़राब थी या तुम्हारी -
आज भी बूझता हूँ जब सोचता हूँ ...
उस दिन इतने सालों में
पहली बार
तुम्हारा गुस्सा देखा
कैसे तुम्हें भरे ऑडिटोरियम में
बाहर निकल जाने को कहा गया था !
कैसे तुम पैर पटककर
गाली देते हुए
एकदम चले भी गए थे ...
अपने को पहले पत्थर, फिर -
पत्ते - सा काँपते हुए पाया था
दस ही मिनट में, मैं भी -
सब छोड़ - छाड़कर
तुम्हें ढूँढने निकल पड़ा था ...
तुम अपने कमरे में आ गए थे
कुछ शांत
कुछ भरे हुए
जो हुआ, क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ
उसका ज़िक्र न तुमने किया
न मैंने ...
तुम्हें कुछ देर अकेला छोड़ना सही रहेगा
यह सोचकर
मैं अपने कमरे में आ गया था
पर
तुम तो ठहरे तुम
कब ठहरे मेरे बिना
दस ही मिनट में -
तुम मेरे दरवाज़े पर
ग्यारहवे मिनट में -
मेरे बिस्तर पर
चौकड़ी मार, ऐनक चढ़ा -
बिना कुछ कहे
अपना लैपटॉप खोल
काम करने में हो गए थे मशगूल ...
मैं हैरान, हमेशा की तरह
कैसे तुम -
अपने अंदर के झंझानल को
इतनी आसानी से
बिसरा गए थे ...
मुझे पता नहीं क्या सूझा था
उस एक पल -
अपने मिट्टी के रंगों को
ज़मीन पर फैलाकर
अचानक से ही -
चूने की दीवार पर
कुछ उकेरना शुरु कर दिया था
कैसे तो सारे हाथ, कपड़े, चेहरा
सब रंग - रंग हो गए थे
मानो -
हुसैन का भूत उतर आया हो अंदर मेरे ...
लगभग डेढ़ घंटे तक साँस नहीं ली थी मैंने
लगभग डेढ़ घंटे तक तुम्हें देखा तक नहीं था मैंने
तुमने भी कुछ नहीं कहा, बल्कि -
गाने चला दिये थे !
गाने चलते रहे
दीवार रंगती रही
तुम भी हैरान
मैं भी हैरान
ढलता सूरज भी हैरान ...
हमने पाया, हमारे सामने -
बिखरे रंगों के बीच
हर तरह के रंगों से रंगे
एक पाँव पर नाचते
अपने में ही डूबे
गणपति !
मैंने पूछा - क्या नाम दूँ ?
फट से तुम्हारे मुँह से निकला था -
मौर्या ...
कैसे तुम खुली आँखों से देखते रहे
कभी मुझे
कभी मौर्या को !
कैसे तुमने अचानक से
बिस्तर पर ही खड़े-खड़े
मुझे गले लगा लिया था !
कैसे सुबह से भूखे हमने
कमरे में ही एक साथ
रात का खाना छककर खाया था !
उस रात -
मौर्या ने तुमसे साँसें पाईं थीं ...
साल - दर - साल
उस पर, चूने की -
न जाने कितनी ही परतें चढ़ गईं होंगी ...
आज सब दफ़न है !
वह दिन दफ़न
वह शाम दफ़न
तुम दफ़न !
जाते - जाते, काश तुम -
बता ही जाते
उखड़ी उधड़ी साँसों में जीते
मौर्या की -
और
मौर्या को रंगने वाले की -
मुक्ति का कोई उपाय !
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