the fence
Reminiscences from my diary
March 14, 2021
Sunday 02.00 pm
Patiala
दो दीवारें, और
दो दीवारों को जोड़ती
सीमेंट - पत्थर की एक मुंडेर !
आज, जब
कई मुद्दतों बाद
इस मुंडेर को सहलाया, तो
नाखूनों से शुरू होकर
शरीर के रेशे - रेशे तक
एक स्मृति, और
उस स्मृति को बनातीं
असंख्य स्मृतियाँ
कौंध गईं !
मुंडेर के दोनों ओर पाँव लटकाये
तू और मैं
और हमारी पीठों को सहारा देतीं
ये दो दीवारें !
अकेले में
मेले में
उजाले में
अंधेरे में
पूस में
बरसात में
तू, मैं, हमारी बातें
और बातें
और बस बातें
इतनी, कि
अगर बातों की सीढ़ी बनाऊँ
तो चाँद छू जाऊँ !
सोच रहा हूँ -
यह जानकर कि
तू अब नहीं है, और
इसे छूने कभी नहीं आयेगा
क्या यह मुंडेर, या
इसके अंदर की कोई नींव, कोई परत, कोई निशान
महज़ मेरे कुरेदने से
कभी मुझे मेरा चाँद
या उसका एक कतरा भी
दिला पाएँगे !
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