Random rains
Reminiscences from diary
May 12, 2021
Wed, 11:15 pm
Murugeshpalya, Bangalore
कच्चे सावन
की साँझ
का मेंह
भरता है
उजास
उन्माद
और
ढेर सारी हूक़
रात घिरते घिरते
पानी
बह जाता है
पीछे रह जाती हैं
बेतरतीबें
शरीर का रेशा रेशा
बन जाता है
जुगनू !
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