Grievances
Reminiscences from my diary
June 15, 2021
Tuesday, 10:45 pm
Murugeshpalya, Bangalore
कल ही की तो बात है !
साँझ की बाती करते हुए
साईं से बुदबुदा रहा था
शिकायत, असल में कि -
ठीक है
जो अब नहीं है
जिसकी वापसी अब मुमकिन नहीं
न सही
पर पहले, कमसकम -
एक ज़रिया तो था -
नींद का
जिसमें मैं -
गाहे - बगाहे
रु-ब-रु हो जाया करता था -
दुनिया के सबसे अज़ीज़ चेहरे से
और -
दो सपनों के बीच
जितनी भी कसक रिसती थी
सब धुल जाया करती थी !
एक आलम अब है कि -
उम्र बढ़ने के साथ
आँख -
रात - रात भर
मकड़ी - सी
कुछ बुनती रहती है हवा में !
न नींद आती है
न कोई सपना !
डरने लगा हूँ
क्योंकि -
पहले की बनिस्बत
पलकें मूंदने पर -
चेहरा, चेहरे की बनावट
साफ़ नज़र नहीं आती !
मशक्कत करनी पड़ती है
टुकड़ा - टुकड़ा जोड़ -
याद - याद जोड़ -
उसे पूरा करने की, पर -
कुछ न कुछ छूट जाया करता है !
कितने ही वक़्त से यही हो रहा है !
मैं हैरान, परेशान रहने लगा हूँ !
खैर -
मैं कल ही साईं से यह सब
साझा कर रहा था
और -
साईं ने कल रात ही
एक निहायती खूबसूरत
नींद बुन डाली
और उसमें टाँका -
आकाशगंगा का सबसे चमकीला सपना !
सुनो !
चौबीस घंटे होने को आए हैं !
मैं अभी भी -
हूक़ -
मुस्कान -
स्पर्श -
नमी -
और
तुम्हारे पूरे चेहरे की ख़ुमारी में हूँ !
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