The white shirt
Reminiscences from my diary
June 27, 2021
Sunday, 00:30
Murugeshpalya, Bangalore
इंसोम्निया आम रातों की तरह -
पसरा हुआ है !
बाहर, हल्की बौछार!
रेडियो पर अल्का का गाना चल रहा है -
"तुम साथ हो या न हो, क्या फ़र्क है .."
बेतरतीब हुई अपनी अलमारी को -
थोड़ा सँवारने की कोशिश कर रहा था -
बहुत दिन हो गए यूँ भी !
दायीं ओर का सबसे ऊपर वाला खाना -
ठीक करते - करते
मेरे हाथ में आ गई -
एक शर्ट
वही शर्ट
वही सफ़ेद शर्ट
सफ़ेद शर्ट जिस पर चारकोल जैसे रंग से -
धारियाँ पड़ी हुई हैं
काली नहीं, काली - सी ही !
उँगलियाँ रुक गईं -
आँखें भी, मन भी, पल भी !
मुस्कान आई, चली गई -
फिर आई है, पर आधी सी !
पानी भी आया आँख में -
आधा-सा आँसू लुढ़क पड़ा है -
गाल पर !
कसकर दोनों हथेलियों में
दबा रखा है इसे !
उतनी सफ़ेद नहीं रही अब !
हल्के - हल्के निशान भी हैं यहाँ - वहाँ !
पूरी आस्तीन पूरी नहीं लग रही !
बटन पूरे हैं पर, एक भी नहीं टूटा !
सूँघ रहा हूँ !
दिसंबर की एक कुहासी शाम को ढूँढ रहा हूँ !
शाम, जब तूने -
सड़क पर टहल-कदमी करते हुए -
अचानक ही -
अपने बस्ते से यह सुन्दर सफ़ेद शर्ट निकाली
और मुझे थमा दी थी !
मेरे जन्मदिन का तोहफा !
मुद्दत बाद कोई तोहफा मिला था !
आदत नहीं थी, मैं ठिठक पड़ा !
लेने से साफ़ इंकार कर दिया था !
कॉलर देखकर कहा था -
"यह तो बहुत महंगी होगी!"
कैसे ऐनक नीची कर आँखें तरेरकर -
मेरा बस्ता छीनकर उसमें रख दी थी -
यह सफ़ेद शर्ट !
मुझे कोहरा भी बारिश लगा था तब !
रेडियो पर अभी भी गाना चल रहा है -
"तुम साथ हो या न हो क्या फ़र्क है ..."
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