Ranikhet Diaries, Day 06
Reminiscences from my diary
April 11, 2023
Tuesday, 2115 IST
Tara, Kalika, Ranikhet
यूँ तो मैंने सोचा था आज कहीं नहीं जाऊँगा, पर जब आनंद जी ने कहा कि वह अल्मोड़ा जा रहे हैं किसी काम से, और अगर मैं चाहूँ वह मुझे सूर्य मंदिर छोड़ सकते हैं, तो मैं खुद को रोक नहीं पाया। उमंग पहुँचकर त्रिशूल और चारखम्बा देखता रहा , धूप सकता रहा और उनका इंतज़ार करता रहा। साढ़े दस बजे हम निकले। रानीखेत - अल्मोड़ा का रास्ता आसान नहीं लगा। काफ़ी हेयर-पिन मोड़ थे। आँखों के सामने हरे पहाड़, भूरे पहाड़, सफ़ेद पहाड़ !
सूर्य मंदिर का पूरा नाम है कटारमल सूर्य मंदिर ! किम्वदंती है कि कत्यूरी वंश का यह मंदिर लगभग ग्यारह सौ साल पुराना है और इसको एक रात में बनाया गया था ! मंदिर का शिखर आज भी अपूर्ण है क्योंकि बनाते-बनाते भोर हो गयी थी। बीच में ही क्यों छोड़ दिया, कोई नहीं जानता ! मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर है और प्रांगण में मुख्य मंदिर के अलावा लगभग पैंतालीस छोटे छोटे मंदिर भी हैं। सामने पूरा अल्मोड़ा दिखता है।
बहुत चिलचिलाती धूप थी। मंदिर परिसर में ज़रा सी छाँव ढूंढकर काफी देर वहाँ बैठा रहा। यहाँ की धूप और हवा कैलासा की दो आँखें, और मेरी दो आँखों में कैलासा की छवि !
मंदिर की पहाड़ी से नीचे आकर एक जगह पहाड़ी थाली खाई - रोटी, मोटे चावल, आलू के गट्टे, भट्टे की दाल, भाँग की चटनी ! ऐसा नहीं कि बहुत अच्छी लगी पर चूँकि सुबह से कुछ नहीं खाया था, इसलिए अच्छे से पेट भर खाया।
फिर शुरू हुआ रोमांच ..
आनंद जी को अल्मोड़ा से वापसी करने में अभी भी दो घंटे थे। खुद ही चलता हूँ। यह सोचकर कि इतनी धूप में नीचे कोसी की सड़क पर आने के लिए कौन छः किलोमीटर चले, मैंने पहाड़ी ढलान से जंगल के रास्ते उतरना शुरू किया। शायद नहीं करना चाहिए था ! काफ़ी ढलान थी, कंटीली झाड़ियाँ भी, और दूर दूर तक कोई नहीं। दो बार पाँव फिसला - एक बार पहली पहाड़ी पर, दूसरी बार दूसरी पहाड़ी पर। दाए पाँव की नस खिंच गई पर किसी तरह लंगड़ाकर तीस मिनट की मशक्क़त के बाद, दो पहाड़ियों का 'ट्रेक' कर मैं मुख्य सड़क पर था। थोड़ी दूर चलकर रानीखेत जाती एक बस मिली और तब जाकर जान में जान आई।
कल यहाँ से वापसी है ...
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