Ranikhet Diaries - Day 02
Reminiscences from my diary
April 07, 2023
Friday, 0700 pm
Tara, Kalika, Ranikhet
चीड़ के पेड़ कितने सुन्दर होते हैं।
तरह-तरह से सुन्दर ... तरह-तरह से हरे!
ऐसा नहीं है कि पहले कभी नहीं देखा या कभी पढ़ा नहीं इनके बारे में। यूँ भी यदि आप निर्मल के दीवाने हों तो कहीं न कहीं चीड़ से अच्छी जान पहचान हो ही जाती है। पर आज से पहले इतनी तसल्ली से चीड़ों को मैंने नहीं देखा था। पहाड़ों के संकरे रास्तों पर ट्रैफिक जाम लगने का कुछ तो फायदा हुआ। :)
कल का दिन काफी हद तक सफर में बीता। दिल्ली से हल्द्वानी की ट्रेन भले ही काफ़ी रुक-रूककर चली पर झुंझुलाहट नहीं हुई। अब चाहे इसे रानीखेत जाने का, हिमालय से फिर मिलने का रोमांच कहूँ या चाहे तो दिल्ली की भीड़ से, उमस से दूर होने की तसल्ली ! रात के लगभग आठ बजे थे जब गाड़ी मुरादाबाद स्टेशन छोड़ रही थी। अँधेरे में जल-बुझ करती रंगीन रोशनियाँ देखते-देखते नज़र ऊपर आसमान पर पड़ी तो बस वहीं अटक गयी थी ... कितनी ही देर तक!
चैत की पूनम का चाँद!
कितना वृत्त! कितना सफ़ेद!
चलती ट्रेन की खुली खिड़की से आती ठंडी हवा की सिरहन को समेटता मैं टकटकी लगाए साथ चलते चाँद को अपनी आँख के पानी में सहेजता रहा ! सुनो गुलज़ार! चाँद पर तुम्हारा ही कॉपीराइट नहीं है ! न मान पाओ तो 'अपने' चाँद से उसका पता माँग लेना ! :)
कल चाँदनी, आज चीड़! कोई चाहकर भी कैसे न याद करे निर्मल को, निर्मल की 'चीड़ों पर चाँदनी' को! निर्मल के साथ आज हालाँकि कुछ बातें अनुराधा की भी कौंधती रहीं कि रानीखेत-अल्मोड़ा के पहाड़ों को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे ये वादियाँ धरती की लहरें हों जो कभी किसी काल में उठीं और बस उठीं ही रह गयीं ! इन्हीं लहरों को कल रात के चाँद की बगल में बिठाते-बिठाते कब ढाई घंटे से पाँच घंटों में बदला हल्द्वानी - रानीखेत का सफ़र इत्मीनान से बीत गया, ख़ास पता नहीं चला।
तारा एक बहुत खूबसूरत कॉटेज है ! बहुत ज़्यादा खूबसूरत ! पॉल कपल ने बहुत शालीनता से इसको बनाया - संजोया है। सत्तर वर्ष के कल्याण पॉल और अनीता पॉल से बात करना अपने आप में सुकून है ! यह बात अलग है कि मिसेस पॉल की चाय मेरे मन को ज़रा भी तरावट नहीं दे पाई ! कल ये लोग अचानक से किसी काम से दिल्ली जा रहे हैं। इनसे दोबारा मिलना नहीं होगा ! क्योंकि तारा में ठहरने का एक कारण पॉल्स के साथ रहना भी था, इनका जाना निराशाजनक है !
ख़ैर ...
एकांत की नियति से कोई तारा भला क्यों उलझे ...
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