Ranikhet Diaries, Day 03
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Reminiscences from my diary
Apr 08, 2023
Saturday 1015 pm
Tara, Kalika, Ranikhet
एक तरफ़ चीड़ और देवदार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ और उनके नीचे जमे पत्थरों और चट्टानों के हर कोने से निकले अनगिनत तरह के जंगली फूल .. दूसरी ओर हिमालय की वादियों की लहरें, और उनके पीछे सफ़ेद बर्फ़ से ढका, सूरज की ऊष्मा से सजा विशाल त्रिशूल! और बीच में?
बीच में संकरी सड़क पर अपनी धुन में डगमग-डगमग ढग भरता मैं ! :)
चार किलोमीटर अल्मोड़ा के रास्ते पर चलता रहा.. घाटी से अभिभूत होकर कभी भी कहीं भी रुककर एकटक देखता रहा .. देखते-देखते फिर चलता रहा ! अल्पाइन कैफ़े से कुछ दूर पहले मैं नीची - सी एक छत पर उतरा और पाँव लटकाकर गहरे से हलके होती पहाड़ों की लड़ियों को देखता रहा ... ज़रूर ऐसी ही किसी जगह पर अनुराधा ने अपनी हैदराबादी माया को गड़ा होगा .. शायद यहीं कहीं अपनी सिल्वर छड़ी से खेलते नब्भे बरस के दीवान साब दिख जायेंगे ... शायद यहीं कहीं से कृष्णकली की खिलखिलाहट सुनाई देगी ... शायद! वहाँ बैठा मैं याद करता रहा बारह बरस पहले ब्लैक्सबर्ग में बितायी शामें जब यूनिवर्सिटी से लौटकर मैं चुपचाप एक निर्जन सी जगह पर घास पर बैठ पांव लटका दूर 'मोव' रंग के पहाड़ों को देखता रहता ... देखता ही रहता जब तक पीछे से 'शानो' की पुकार न आ जाती !
उमंग से दो किताबें खरीदी, दो मफलर भी और एक कीवी जैम! लगभग एक घंटा वहां बिताकर वापस फिर अपनी लाठी से खेलता हुआ धीरे-धीरे पग भरता, बिना बंदरों से डरे लौट आया तारा!
पूरी वापसी यही सोचता रहा कि त्रिशूल, उस ओर दिखते पहाड़, और इस ओर के घने पेड़ ज़रूर एक ही रुबाई के टुकड़े हैं, जो बस एक एक दूसरे को तकते-तकते नज़्म-नज़्म हो रहे हैं ! इन नज़्मों को पिरोती हवा चिट्ठी पहुंचाने वाला कबूतर है !
सुकून की कोई और परिभाषा कोई गड़कर तो दिखाए !!
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