Sunday, 9 April 2023

Ranikhet Diaries - Day 04

Reminiscences from my diary
April 09, 2023
Sunday 2030 IST
Tara, Kalika, Ranikhet

हिमालय की धूप मेरे शरीर का ताप है! 

सुबह साढ़े आठ बजे सौ किलोमीटर दूर बाघेश्वर के लिए निकला। काफी देर तक गाड़ी की खिड़की से बायाँ हाथ बाहर निकाल धूप के कणों को नाखूनों के पोरवों में, पोरवों से हथेली की रेखाओं में, वहाँ से धमनियों के जाल में, और जाल से सीधा दिल में सहेजता रहा! हवा में हमेशा की तरह चीड़ के घुंघरुओं की खनक थी! सफ़र लम्बा रहा पर नींद मेरे झोले में मज़े से सोती रही बिना मुझे परेशान किए! बाघनाथ के दर्शनों के बाद कुछ देर गोमती किनारे बैठना अच्छा रहा। यहाँ जलेबी काफी  मिलती हैं। 

एक साया है! हर सफ़र में साथ-साथ रहता है! यहाँ भी रहा! वापसी में बैजनाथ के बेतहाशा तपते पत्थरों पर पाँव रखा तो छाँव की खड़ाऊँ बन गया, फिर नंदी के कान में फुसफुसाई गई मन्नत और थोड़ी ही देर बाद खुद बैजनाथ के चारों ओर पसरा दस शताब्दियों का मौन! गर्भगृह में शिवलिंग के पास माँ पार्वती की एक विशाल मूर्ती है -  काले पत्थर से काटकर बनाई गई! मन करता है उनकी इस जटिल अप्रतिम मूरत को निर्निमेष निहारते रहो  ... निहारते ही रहो ! कहते हैं कि यहीं गोमती और सरयू के संगम पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था और वे यहीं रुके थे! न जाने कितनी कहानियाँ - किंवदंतियाँ उजास पाती हैं यहाँ !

साथ-साथ रहता है मगर साथ नहीं रहता  ... बैजनाथ से कौसानी के दौरान सोचता रहा कि काश  .. काश दाएँ - बाएँ चलती कुमाऊँ की कोई दुर्गम पगडण्डी उधार मिल जाए और मुझे सात आसमानों के पार ले जाए! मैं भी तो अक्स के रक़्स का लुत्फ़ उठाऊँ!

गरुड़ पार करते हुए एक लाउडस्पीकर से भेंट हो गई जो कह रहा था - आपके अपने 'शहर' गरुड़ में पहली बार 'अल्ट्रासाउंड' की सुविधा  ...!

कंप्यूटर चाहे कितने भी नीले और हरे के 'शेड्स' बना ले, उतने कभी नहीं बना पायेगा जितने मैंने कौसानी के आसमान में और खेतों में देखे! नीचे हरा, ऊपर नीला और क्षितिज पर फैली पूरी की पूरी 'कलर पैलेट'!

एक-दो गानों को छोड़कर कोई भी गाना पसंदीदा नहीं था पर रंजीत जी गाड़ी चलाये जा रहे थे और हर गाना गुनगुनाये जा रहे थे! हालाँकि रवि होता तो उसको भी ये सारे गाने ज़रूर पसंद आते  ... 


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