Whenever you come..
Reminiscences from my diary
June 16, 2023
Friday 2015 IST
Murugeshpalya, Bangalore
आने को तो कोई भी
कभी भी
कहीं भी
कैसे भी
आए पर तू
आना यूँ
जैसे
मूसलाधार बरसात को देख
झरते हैं
आँसू
जैसे
धमकता है धनक
गीली धूप ओढ़े
जैसे
फ़ाल्गुन से छनती
टेसू की महक
जैसे
बियाबाँ मोहल्ले में अचानक
बजी हो साँकल
जैसे
चलते-चलते टकराए
भूला बिसरा चेहरा
जैसे
चीरापुंजी के आसमान में
पूरा का पूरा चाँद
जैसे
किसी अधूरी कविता से झड़ा
एक-आधा खोया छंद
जैसे
एक रात लद जाता है ठूँठ
सौ-सौ हरसिंगार से
जैसे
बीस साल पुरानी किताब में मिल जाए
किसी सफ़र का टिकट
हाँ! तू -
ऐसे ही, यूँ ही, आ जाना
जैसे
बुद्ध को बुद्ध बनाने आयी थी
एक सुजाता
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